कामाख्या मन्दिर (Kamakhya Temple)

Kamakhya Temple

कामाख्या मन्दिर (Kamakhya Temple)

कामाख्या मन्दिर (Kamakhya Temple) भारत के उत्तर-पूर्व के राज्य असम में स्थित है। यह गुवाहाटी से मात्र 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। यह मंदिर देवी सती (Goddess Sati) के लिए समर्पित है। यह एक तांत्रिक महत्व वाला मंदिर है, जहां साधु संत अपनी तंत्र विद्या की साधना करते हैं। 

कामाख्या मन्दिर का महत्व (Importance of Kamakhya Temple)

माँ कामाख्या (Maa Kamakhya) का यह मंदिर नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित है जो सिद्ध शक्तिपीठ (Sidh Shaktipeeth) सती की शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जो भी भक्त अपने जीवन में तीन बार मां कामाख्या के दर्शन कर लेते हैं, उन्हें सांसारिक बंधन से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा देवी ग्रंथ कुलावर्ण तंत्र और महाभगवती पुराण में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति इस मंदिर में गंगाजल चढ़ाएगा और बचे हुए गंगा जल को ब्रह्मपुत्र नदी में विसर्जित देगा उसे वाजपेय यज्ञ (Vajpey Yagya) का फल मिलेगा। क्योंकि यह मंदिर हमेशा से ही सभी लोकों की दिव्य शक्तियों का केंद्र रहा है। वाजपेय यज्ञ एक वैदिक यज्ञ है जिसका वर्णन यजुर्वेद (Yajurvada) में मिलता है। यह यज्ञ शौर्य प्रदर्शन एवं प्रजा के मनोरंजन हेतु किया जाता था।

कामाख्या मंदिर का इतिहास (History of Kamakhya Temple)

कामाख्या मंदिर (Kamakhya Mandir) की उत्पत्ति सबसे पहले 8वीं शताब्दी में हुई थी। इसके बाद यह कई बार नष्ट हुआ और कई बार फिर से बनाया गया। आखिरी बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण कूचबिहार के राजा नारा नारायण ( Nara Narayan) ने 16वीं शताब्दी में कराया था। 

पौराणिक इतिहास (Mythological History of Kamakhya Mandir)

कहा जाता है कि जब राजा दक्ष (King Daksh) अपनी बेटी के साथ भगवान शिव  का विवाह करने के लिए सहमत नहीं थे। इसलिए उन्होंने भगवान शिव (Lord Shiva) को यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं दिया। जब सती (Maata Sati) को यह बात पता लगी तो उन्हें भगवान शिव का अपमान सहन नहीं हुआ। इसके बाद गुस्से में आकर सती आग में कूद गईं। जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो वो बहुत दुखी हुए और तांडव करने लगे। इससे सभी देवता चिंतित हो गए। सती को पुनः जीवित करने के लिए भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने सुदर्शन चक्र से सती की लाश के 108 टुकड़े कर दिए। इसके बाद शरीर के वो अंग धरती पर अलग-अलग हिस्सों में जा गिरे। जहां पर 108 शक्ति पीठों की स्थापना की गई। कामाख्या में माँ की योनि गिरी थी, इसलिए इन्हें मासिक धर्म देवी (Masik Dharm Devi) कहा जाता है। 

कामाख्या मंदिर में होती है योनि की पूजा

कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) में सती की योनि गिरी थी, उस योनि ने देवी का रूप धारण कर लिया था। इसलिए इस जगह पर देवी की योनि की पूजा (Yoni ki Puja) की जाती है। यहां पर वार्षिक प्रजनन उत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसे अम्बुवाची पर्व (Ambubachi parv) के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस दौरान देवी को मासिक धर्म होता है। इसलिए तीन दिन तक मंदिर के कपाट बंद रखे जाते हैं और इसके बाद चौथे दिन पर्व के साथ मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं। 

यात्रा करने का सबसे अच्छा समय

वैसे तो कामाख्या मंदिर (Kamakhya Mandir) साल भर भक्तों के लिए खुला रहता है। जहां भक्त मां कामाख्या के दर्शन कर सकते हैं। लेकिन यदि भक्त अक्टूबर से लेकर मार्च के बीच यहां की यात्रा करते हैं तो यह उनके लिए ज्यादा अच्छा रहेगा। इस मौसम में ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती है और मौसम ठंडा बना रहता है। ऐसे मौसम में यात्रा करने से पर्यटक आनंदपूर्वक यात्रा कर सकते हैं।

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