रक्षाबंधन का अर्थ रक्षा या विजय की कामना के लिए सूत्र का बंधन है। इस पर्व के शुभारंभ की सबसे पुरानी घटना देवासुर संग्राम (Devasur Sangram)की है जब देवता असुरों से हारने लगे तब देवराज इंद्र की पत्नी सची ने मंत्रयुक्त रेशमी धागे को इंद्र के हाथों में बांधा था। इसके बाद देवताओं की विजय हुई थी।
दानवराज राजा बली (Danavraj Bali) को वामनावतार में भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu)ने तीन पग नाप कर पाताललोक का राजा बना दिया था तब उसने अपनी भक्ति से विष्णु को अपने राज्य का रक्षक बनने को विवश कर दिया। इससे बैकुण्ठधाम में अकेली माता लक्ष्मी चिंता करने लगीं । माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) ने राजा बली को रक्षा का सूत्र बांध कर अपना भाई बनाया और उसके बदले में विष्णु को मुक्त कराकर बैकुण्ठ ले आयीं थीं।
इसके बाद महाभारत के युद्ध शुरू होने से पहले पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण (Shrikrishna) से जब सुरक्षा का उपाय पूछा था तो उन्होंने रक्षासूत्र बांधने का सुझाव दिया था। इसके बाद द्रौपदी (Draupadi) ने श्रीकृष्ण (Shri Krishna) को और माता कुंती ने अभिमन्यु को रक्षा सूत्र बांधा था।
इन सबमें मार्मिक और हृदयस्पर्शी घटना श्रीकृष्ण (Shrikrishna) और द्रोपदी (Draupadi) की है। जब महाभारत काल में ही चेदिनरेश शिशुपाल का वध करने के लिए श्रीकृष्ण (Shrikrishna) ने जब सुदर्शन चक्र का उपयोग किया तो उनकी तर्जनी रक्तरंजित हो गयी। यह दृश्य देखकर द्रोपदी (Draupadi) ने अपनी साड़ी से चीर फाड़कर तत्काल श्रीकृष्ण (Shrikrishna) की तर्जनी पर बांध दिया था। उस समय श्रीकृष्ण (Shrikrishna) ने द्रोपदी(Draupadi) को समय आने पर रक्षा का वचन दिया था। जब द्यूतक्रीड़ा में हारने के बाद द्रोपदी (Draupadi) का चीरहरण का प्रयत्न किया गया तब श्रीकृष्ण (Shrikrishna) ने उनकी रक्षा कर यह वचन निभाया। यह सबसे अधिक चर्चित घटना रही।
संयोगवश ये सारी घटनाएं श्रावण मास की पूर्णिमा को ही घटीं। इसलिये यह रक्षाबंधन का पावन पर्व (Rakshabandhan ka Pavan Parv) आज भी परम्परागत तरीके से आयोजित होता है। यह पर्व भाई-बहन के स्रेह के रूप में मनाया जाता है।
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