कृष्ण जी (Krishna)

Krishna

भगवान श्री कृष्ण जी (Lord Krishna)

Radha Krishna

हिंदू मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण भगवान (Bhagwan Shri Krishna) विष्णु  के प्रमुख अवतारों में से एक अवतार थे। कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण के जन्म का मुख्य उद्देश्य राजा उग्रसेन के बेटे कंस का वध करने के लिए हुआ था। कंस एक अत्याचारी शासक था, जिसने अपने पिता को ही सिंहासन से हटाकर कारागार में बंद कर दिया था। कंस के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए कृष्ण भगवान ने जन्म लिया।

कान्हा जी के जन्म का उद्देश्य (Purpose of Krishna Avatar)

पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण (Shri Krishna) का जन्म कंस की बहन देवकी तथा देवकी के पति वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में हुआ। धार्मिक कथाओं के अनुसार देवकी और वासुदेव के विवाह के उपरांत जब कंस देवकी के रथ को विदा कर रहा था, उसी समय आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस का वध करेगा। अपने अंत की आकाशवाणी सुनकर कंस घबरा गया और उसने अपनी बहन देवकी की हत्या करनी चाही। वासुदेव ने कंस से कहा कि महाराज कंस कृपया आप देवकी की हत्या ना करें, हम अपनी संतानों को आपके हाथों सौंप देंगे आप उन्हें  समाप्त कर देना। वासुदेव की इस बात से कंस से सहमत हो गया तथा देवकी एवं वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया। इसके उपरांत देवकी एवं वासुदेव के सात संतानों की क्रमशः हत्या कर दी।

बालकृष्ण का जन्म (Birth Of Krishna)

सात संतानों की हत्या करने के बाद अब कंस को इंतजार था देवकी के आठवें संतान के जन्म का। आठवीं संतान के जन्म के कुछ क्षणों पूर्व आसमान में काले बादल छाए हुए थे, तेज बारिश होने के साथ तेज बिजली कड़क रही थी। रात्रि 12:00 बजे कारागार के सभी ताले स्वतः ही खुल गए तथा कारागार की सुरक्षा करने वाले सैनिक गहरी निद्रा में चले गए। इसी समय वासुदेव तथा देवकी के सामने भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) प्रकट होते हैं तथा देवकी को यह संदेश देते हैं कि देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में भगवान विष्णु खुद ही जन्म लेंगे। साथ ही भगवान विष्णु ने कहा कि गोकुल में नंद बाबा के घर कन्या का जन्म हुआ है। जिसे वासुदेव को अपनी पुत्री के रूप में लाना होगा तथा अपने आठवें पुत्र को नंद बाबा के घर छोड़ देना होगा। जब श्री कृष्ण जी ने जन्म लिया तब वासुदेव ने श्री विष्णु जी के कहे अनुसार ही कार्य किया। जब कंस ने यह समाचार सुना कि देवकी की आठवीं संतान ने जन्म ले लिया है, कंस ने देवकी की संतान की हत्या करने के लिए अपने हाथ आगे किये। तत्काल ही कन्या आकाश में चली गई तथा आकाशवाणी हुई की हे कंस! तुम्हारा विनाश करने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है।

भगवान कृष्ण ने एक ही समय में 16,100 राजकुमारियों से किया था विवाह ।

भगवान कृष्ण (Bhagwan Krishna) की आठ प्रमुख रानियां थीं ।जिन्हें 'अष्टभ्र्य' के नाम से जाना जाता था, अर्थात् रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, नागनजिति, कालिंदी, मित्रविंदा, भद्र, लक्ष्मण थी । पोराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान श्री कृष्ण (Bhagwan Shri Krishna) ने 16,100 महिलाओं को नरकासुर नामक राक्षस की कैद से मुक्त करवाया था । दरसल राक्षस नरकासुर ने 16,100 महिलाओं को अपनी कैद में रखा हुआ था तब श्रीकृष्ण ने उन 16,100 महिलाओं को उस राक्षस की कैद से उनको मुक्त करवाया था, राक्षस की कैद से मुक्त होने के बाद जब वह महिलाएं अपने परिवार के पास लौटी तो उनके परिवार वालों ने उन्हें अपनाने से माना कर दिया था, उसके पश्चात वह सब महिलाएं, भगवान कृष्ण के पास वापस लौट आई थी तब उन महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने हेतु भगवान श्रीकृष्ण ने उन सभी से विवाह कर लिया हालांकि, कहा यह भी जाता है कि उनके साथ उनका कभी कोई संबंध नहीं था ।

कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami)

कंस का वध करने के लिए विष्णु जी के परमावतार श्री कृष्ण जी (Shree Krishna Ji) ने जब जन्म लिया तभी से उनके चमत्कार दिखने लगे। श्री कृष्ण के जन्म दिवस को ही भारतवर्ष में श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami) के रूप में मनाया जाता है। श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन हुआ था। जन्माष्टमी के त्योहार को लेकर भक्तों में काफी उत्साह देखने को मिलता है तथा भक्तों द्वारा श्री कृष्ण के कथाओं की झलकियां निकाली जाती है।

बालकृष्ण की बाल लीलाएं (Krishna Leela)

कृष्ण भगवान (Krishna Bhagwan) बचपन से ही नटखट बालक थे। यशोदा जी ने अपने प्यारे कान्हाजी को बड़े ही दुलार से पाला था। कहा जाता है कि यशोदा मैया और नंद बाबा के साथ-साथ गांव वाले भी श्री कृष्ण के बाल लीलाओं से परेशान रहा करते थे। बालकृष्ण अपने मित्रों के साथ गांव वालों के घर से दही माखन चुराया करते थे तथा गांव वालों के शिकायत करने पर माता यशोदा उन्हें डांटती थी। भगवान श्री कृष्ण का नाम तो राधा जी के साथ जुड़ा ही है, परंतु गांव की गोपियों के साथ भी श्री कृष्ण जी के मधुर संबंध थे । कृष्ण भगवान की रासलीलाएं भी कृष्ण कथाओं की एक अभिन्न अंग है। राधा कृष्ण की रास लीलाएं पूरे गोकुल में चर्चित थी। श्री कृष्ण तथा राधा जी के एक दूसरे के प्रति प्रेम व समर्पण से प्रभावित होकर श्री कृष्ण राधाकृष्ण के नाम से भी जाने गए।

राधा कृष्ण से जुड़े होली का महत्व (Significance of Holi associated with Radha Krishna)

होली खुशियों का त्योहार (Khushiyon ka Tyohaar Holi) है, तथा होली में राधा कृष्ण (Radha Krishna) की लीलाओं में प्रेम लीलाओं का भी वर्णन मिलता है। किंवदंतियों के अनुसार अपने श्याम रंग से दुखी बालकृष्ण को यशोदा मां ने यह सुझाव दिया कि तुम राधा को अपने रंग में रंग दो। इतना सुनने के पश्चात नटखट कान्हा ने राधा सहित सभी गोपियों को रंग लगाना प्रारंभ कर दिया। उनकी यही शरारत लोगों में व्याप्त हो गई तथा बसंत के महीने में एक दूसरे पर रंग डालने की इस परंपरा को होली के नाम से जाना गया। होली रंगों का त्योहार है तथा इन रंगों में भगवान का रंग, भक्ति का रंग, विश्वास इत्यादि के रंग भी शामिल होते हैं।

कंस का अंत (Kansa's end)

भगवान कृष्ण (Bhagwan Krishna) ने  कई राक्षसों का वध किया है, तथा अनेकों लीलाएं की। परंतु उनके कृष्णावतार का प्रमुख उद्देश्य कंस का वध करना था। देवकी और वासुदेव के विदाई के वक्त ही आकाशवाणी हुई थी,जिसे सुनकर कंस ने कई प्रयत्न किए की देवकी का आठवां संतान धरती पर जन्म ही ना ले। परंतु भगवान विष्णु के परमावतार श्री कृष्ण रूप ने कंस के सभी प्रयासों को विफल कर दिया। श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम के अद्भुत पराक्रम को देखने के बहाने से कंस ने पहलवानों के हाथों श्रीकृष्ण जी का वध करवाना चाहा। परंतु कृष्ण जी और बलराम जी ने मिलकर पहलवान का ही अंत कर दिया‌। इसी के साथ-साथ उन्होंने कंस का वध करके अपने माता देवकी तथा पिता वासुदेव को कारागार से मुक्त कराया। श्री कृष्ण इस घटना के बाद वह अपने गुरु के पास शिक्षा लेने के लिए द्वारिका चले गए । इसके बाद श्री कृष्ण का उल्लेख महाभारत कथा के दौरान मिलता है।

कृष्ण लीला (Shri Krishn Leela)

भगवान श्री कृष्ण (Bhagwan Shri Krishna) का पूरा जीवन ही उनके लीलाओं से चमत्कृत है। बचपन में पूतना का वध, कंस द्वारा भेजे गए कई दानवों का अंत, राधा तथा अन्य गोपियों के साथ रास लीलाएं, उंगली पर पर्वत उठाना, कालिया नाग का अंत करना, तथा अंत में कंस का वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की अनेकों लीलाएं पौराणिक कथाओं में वर्णित है।

कृष्ण मंत्र तथा कृष्ण चालीसा ( Lord Kridhna Mantra and Krishna Chalisa)

कलिसंतरण उपनिषद में रघुनंदन भट्टाचार्य जी द्वारा रचित कृष्ण मंत्र निम्न है-

हरे कृष्ण हरे कृष्ण,

कृष्णकृष्ण हरे हरे।

 हरे राम हरे राम,

 राम राम हरे हरे।

इस मंत्र को महामंत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह अति पवित्र मंत्र है। इसमें भगवान के कई नाम शामिल है जिसमें मुख्य नाम राम,कृष्ण,शिव तथा हरी है। कृष्ण चालीसा नाम से उपलब्ध पाठ भी भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करता है तथा श्रीकृष्ण की भक्ति में उनकी शक्ति को प्रदर्शित करता है।

श्रीकृष्ण जी से जुडी मीराबाई की कथा (Meerabai's story related to Shri Krishna)

मीराबाई एक कृष्ण भक्त (Krishna Bhakt) महिला थी। बाल्यकाल में ही मीराबाई की माता का देहांत हो गया था।  उनके पिता रतन सिंह  राजनीतिक युद्ध में व्यस्त रहा करते थे। मीराबाई का पालन पोषण उनके दादा जी द्वारा किया गया। दादा कि भक्ति भावना का प्रभाव मीराबाई के मन मस्तिष्क पर पड़ा। कुछ समय बाद मीराबाई का विवाह हुआ तथा विवाह के उपरांत इनके पति की मृत्यु हो गई। उनके पति की मृत्यु के बाद गुरु रविदास जी की शरण में चली गयी, जो मीरा बाई के लिए एक आश्रय था। पति की मृत्यु के पश्चात मीराबाई को पारिवारिक यातनाएं दी जाने लगी। परंतु मीराबाई पर संतों की संगति का प्रभाव था और वह संतो की मंडली में जाकर रहने लगी तथा जय श्री कृष्ण का जाप करने लगी। मीराबाई ने कृष्ण भक्ति में कई रचनाएं की। उनकी मृत्यु के संबंध में किवदंती है कि मंदिर में नाचती गाती मीरा बेहोश होकर गिर पड़ी तथा सदा के लिए अपने प्रभु श्री कृष्ण जी में समाहित हो गई। मीरा की श्री कृष्ण जी के प्रति भक्ति भावना को देखते हुए कुछ भक्त श्री कृष्ण को मीराकृष्ण के नाम से भी पुकारते हैं।

भगवान श्री कृष्ण जी की मृत्यु (Death of lord Shri Krishna)

पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण (Shree Krishna) के पुत्र सांबा ने ऋषियों के साथ गर्भवती स्त्री बन कर छल किया। इसके उपरांत ऋषि क्रोधित हुए तथा सांबा को श्राप दिया कि तुम एक ऐसे लोहे की जन्म दात्री बनोगी जिससे तुम्हारे साम्राज्य का संपूर्ण विनाश होगा। जब यह घटना उग्रसेन से बताई गई तो उन्होंने कहा इस लोहे को चूर्ण बनाकर प्रभास नदी में प्रवाहित कर देने से सांबा को श्राप से मुक्ति मिलेगी। समय बीतने के उपरांत द्वारिका में चारों तरफ अपराध बढ़ गए। यह सब देखकर द्वारिकाधीश श्री कृष्ण दुखी हुए तथा अपनी प्रजा को प्रभास नदी के तट पर पापों से मुक्ति पाने की कथा सुनाई। परंतु प्रभास नदी पर पहुंचने के बाद भी श्री कृष्ण की प्रजा में लोगों का युद्ध नहीं रुका वह आपस में ही लड़ने लगे,और इस प्रकार सभी का अंत हो गया। एक बार कृष्ण भगवान जी पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर विश्राम कर रहे थे। इसी दौरान जरा नाम के एक बहेलिए ने श्रीकृष्ण को हिरण समझ कर उन पर बाण छोड़ दिया। जिससे उनकी मृत्यु हो गई। कहते हैं कि उस बाण में भी उस लोहे का अंश था जिससे श्री कृष्णजी के साम्राज्य का विनाश होना था। इस प्रकार श्री कृष्ण जी के साम्राज्य का अंत हो गया।

प्रमुख कृष्ण मंदिर (Krishna temple)

भारत में प्रमुख कृष्ण मंदिर कि सूची नीचे दी गई है

द्वारिकाधीश मंदिर, द्वारिका

कृष्ण बलराम मंदिर, वृंदावन

जुगल किशोर मंदिर, मथुरा

गुरुवायूर मंदिर,केरल

गोविंद देव जी मंदिर,जयपुर

नाथद्वारा मंदिर, उदयपुर

राजगोपालास्वामी मंदिर, तमिलनाडु

वेणुगोपालास्वामी मंदिर , कर्नाटक

प्रेम मन्दिर (Prem Mandir)

 

पूरब पश्चिम विशेष

बाबा खाटू श्याम   |  गोवर्धन पूजा   |   शरद पूर्णिमा    |   कार्तिक पूर्णिमा   |   भगवान विष्णु   

भगवान शिव   |   भगवान गणेश   |  ब्रह्म देव    |   गौतम बुद्ध  | कार्तिक पूर्णिमा   |   नव दुर्गा  

भगवान् विश्वकर्मा   |   सूर्य देव   |     देवी सरस्वती    |    गणेश चालीसा     |   चित्रगुप्त पूजा 

सरस्वती पूजा   |     श्री विष्णु चालीसा   |     वैष्णो देवी    |    लक्ष्मी आरती   |    देवी दुर्गा

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1 Comments:

  1. Devendra Devendra says:

    मैं आपकी वेबसाइट पर देवकी पुत्र भगवान कृष्ण के समर्थ, सौंदर्यपूर्ण, और प्रेरणादायक स्वरूप के बारे में प्रदर्शित की गई जानकारी का आभारी हूँ। यह वेबपेज एक अद्भुत स्रोत है, जो कृष्णा के चरित्र, लीलाएं और महिमा को समझाने में मदद करता है।

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