भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu), हिंदू पुराणों के अनुसार सृष्टि के पालन कर्ता में से एक हैं। इनकी उत्पत्ति भगवान शिव (Bhagwan Shiv) के शरीर से मानी जाती है। भगवान विष्णु की उत्पत्ति की कथा कुछ इस प्रकार हैं-
एक समय भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि इस सृष्टि में एक ऐसा व्यक्ति भी होना चाहिए जो पूरी सृष्टि का संचालन करने में सक्षम हो। भगवान शिव की यह बात सुनकर माता पार्वती ने कहा हे परमेश्वर! यदि आपने ऐसा सोचा है तो, इसमें अवश्य ही सृष्टि का हित ही निहित होगा। अगले चरण में भगवान शिव ने अपने वाम अंग से अमृत स्पर्श कराया जिससे एक अलौकिक तथा तेजवान व्यक्ति की उत्पत्ति हुई। जिसके तेज से पूरा ब्रह्मांड प्रकाशित हो रहा था। भगवान शिव ने श्री हरि (Shri Hari) से कहा कि मैंने तुम्हारी रचना इस सृष्टि के कल्याण के लिए की है। भगवान शंकर ने इस तेजवान पुरुष का नाम विष्णु रखा। भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) का तेज पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है
श्री हरि विष्णु जी, शिव जी के समक्ष नतमस्तक हुए तथा विनम्रता पूर्वक पूछा, हे प्रभु! मेरे लिए क्या आज्ञा है, तब भगवान शिव ने विष्णु जी को तपस्या करने की आज्ञा दी। उनकी आज्ञा अनुसार श्री विष्णु जी चिरकाल तक तपस्या में लीन रहे। तप करने के कारण विष्णु के प्रताप से जो जल उत्पन्न हुआ वह सृष्टि के सृजन का कारण बना।
भगवान विष्णु सूर्य के समान के तेज तथा कमल के समान आंखों वाले व्यक्ति हैं। भगवान विष्णु की सवारी गरुड़ है। भगवान विष्णु चार भुजाओं वाले हैं। श्री हरि विष्णु अपने एक हाथ में कौमोद की गदा लिए हैं, दूसरे हाथ में पांच जन्य शंख धारण किए हुए हैं। भगवान विष्णु के तीसरे हाथ में सुदर्शन चक्र तथा चौथे हाथ में कमल का पुष्प हैं।
सृष्टि कल्याण के लिए श्री हरि के अवतार
भगवान विष्णु भगवान शिव के कहे अनुसार इस सृष्टि के कल्याण के लिए 10 अवतार लिए ,
भगवान विष्णु के दशावतार निम्न है
मत्स्य अवतार
कुर्म अवतार
वराह अवतार
भगवान नृसिंह
वामन अवतार
बुद्ध अवतार
कल्कि अवतार
भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) जी को प्राचीन समय से ही विश्व की सबसे उच्च शक्ति तथा इस सृष्टि के नियंता के रूप में जाना जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु निराकार परम ब्रह्म है। विष्णु जी का सर्वाधिक वर्णन भागवत एवं विष्णु पुराण में मिलता है। सभी पुराणों में भागवत पुराण को सर्वाधिक मान्यता प्राप्त हैं, उसके अनुसार भगवान विष्णु का महत्व त्रिदेवों की तुलना में सर्वाधिक है। पुराणों में लिखित त्रिमूर्ति भगवान विष्णु को पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के दो और रूप भी हैं जिनमें से एक स्वयं शिवजी (Bhagwan Shiv) तथा दूसरा रूप ब्रह्मा जी (Bhagwan Brahma) का है। विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु ,महेश एक ही है। उन्होंने न्याय के विजय एवं अन्याय के विनाश के लिए संसार की परिस्थितियों के अनुसार अनेक अवतार धारण किए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार विष्णु जी की पत्नी के रूप में लक्ष्मी जी (Devi Lakshmi) का नाम अंकित किया गया है। श्रीहरि विष्णु जी का निवास स्थान क्षीरसागर है और वह शेष नाग के ऊपर विराजमान रहते हैं।
पूर्व भाग प्रथम अंश
पूर्व भाग के प्रथम अंश की कथा में सर्व देवता आदि जी की उत्पत्ति, समुद्र मंथन की कथा, दक्ष आदि के वंश का वर्णन, ध्रुव तथा पृथु का चरित्र, प्रहलाद की कथा, प्राचेतस का उपाख्यान, ब्रह्मा जी के द्वारा देवती देवता, मनुष्य इत्यादि के वर्ग को पृथक पृथक राज्य अधिकार दिए जाने का वर्णन इत्यादि विषयों को विस्तार से बताया गया है।
पूर्व भाग द्वितीय अंश
पूर्व भाग के द्वितीय अंश में प्रियव्रत के वंश का वर्णन, द्वीप और वर्षों का वर्णन, पताल और नरक का कथन, सात स्वर्ग का निरूपण तथा सूर्य आदि ग्रहों की गति का वर्णन, भरत का चरित्र, मुक्ति मार्ग निदर्शन, निदान और प्रभु का संवाद इत्यादि का वर्णन मिलता है।
पूर्व भाग तृतीय अंश
तीसरे अंश में मन्वंतर का वर्णन तथा वेदव्यास का अवतार, नरक भोगने से उद्धार का वर्णन, धर्म का निरूपण, श्राद्ध कर्म तथा वर्णाश्रम धर्म के सदाचार का निरूपण एवं महा मोह के कथा को विष्णु पुराण के पूर्व भाग के तीसरे अंश में बताया गया है। इस अंश की कथा को पाप का नाश करने वाली कथा भी कहते हैं।
पूर्व भाग चतुर्थांश
विष्णु पुराण के चतुर्थ अंश में सूर्यवंश के पवित्र कथा का वर्णन , चंद्रवंशी कथाओं का वर्णन तथा अनेक राजाओं के वृतांत का वर्णन पूर्व भाग के इस अंश में समाहित है।
पूर्व भाग पंचम अंश
विष्णु पुराण के पंचम अंश में श्री कृष्ण के अवतार पर आधारित प्रश्नों के उत्तर हैं, उनसे जुड़ी गोकुल की कथा, बाल्यावस्था में श्री कृष्ण द्वारा पूतना का वध, अघासुर आदि की हिंसा, कंस के वध की कथा, मथुरा की लीला, युवावस्था में श्री कृष्ण द्वारा समस्त दैत्यों का वध, श्री कृष्ण के अलग-अलग विवाह, पृथ्वी से अत्याचार का भार खत्म करने की कथा, अष्टावक्र का उपाख्यान समाहित है।
पूर्व भाग छठा अंश
इस अंश में कलयुग के चरित्र के चार प्रकार से महाप्रलय एवं केशिध्वज द्वारा खाण्डिक्य जनक के जनक को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश इत्यादि का वर्णन किया गया है।
उत्तर भाग
पूर्व भाग के बाद विष्णु पुराण का उत्तर भाग आरंभ होता है। इसमें सूतजी ने सनातन, विष्णुधर्मोत्तर, नामसे प्रसिद्ध नाना प्रकार के धर्मों की अनेक कहानियां कहीं हैं। इसमें पूर्ण व्रत, यम नियम, धर्म शास्त्र, अर्थशास्त्र, वेदांत ज्योतिष वंश वर्णन के प्रकरण मंत्र तथा सभी लोगों का उपकार करने वाली अनेक विद्या समाहित है। विष्णु पुराण में सभी शास्त्रों के सिद्धांत का संग्रह मिलता है। वेदव्यास जी ने कहा है कि जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढ़ते या सुनते हैं उन्हें मनोवांछित फल मिलता है तथा वह मरणो पश्चात विष्णु लोक में चले जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार विष्णु जाप करने से भक्तों के जीवन में फैली बाधाएं दूर होती हैं। विष्णु सहस्त्रनाम में वर्णित श्री हरि विष्णु के 1000 नामों के निरंतर जाप से भक्तों को उनके मन अनुकूल फल प्राप्त होते हैं तथा श्री विष्णु की कृपा उन पर बनी रहती है। निरंतर श्री हरि विष्णु भगवान के भक्त विष्णु चालीसा का पाठ करते हैं। वैशाख, कार्तिक एवं सावन के महीने में विष्णु की आराधना सफल मानी जाती हैं। कुछ पवित्र विष्णु मंत्र निम्नलिखित हैं-
1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
2. श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।
3.ॐ विष्णवे नमः।
4.ॐ हूं विष्णवे नमः।
5.ॐ नमो नारायण। श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि।
उपनिषद में रचित कहानियों के अनुसार माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) हिंदू धर्म के एक प्रमुख देवी हैं। ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी जी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी, इसलिए माता लक्ष्मी को समृद्धि की देवी भी कहा जाता है। यह भगवान महाविष्णु की पत्नी के रूप में जानी जाती हैं। पार्वती, सरस्वती तथा लक्ष्मी 3 देवियों में से एक है। माता लक्ष्मी धन, संपदा, शांति और समृद्धि की देवी मानी जाती है। पुराणों में लक्ष्मी जी के कल्याण हेतु उनको भगवान विष्णु ने पुरुषार्थ के बल पर अपने वश में रखा था। इसलिए विष्णु लक्ष्मी जी एक साथ क्षीरसागर में विराजमान हैं। क्षीरसागर में विराजमान होने के कारण क्षीरसागर को विष्णु निवासम के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू धर्म के कई प्रसिद्ध पर्वतीय तीर्थ हैं। इन्हीं पर्वतीय तीर्थों में से एक है विष्णुप्रयाग। विष्णुप्रयाग भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में बसी हुई एक बस्ती है। यह बस्ती अलकनंदा नदी धौलीगंगा नदी के संगम पर बसी है। विष्णु प्रयाग संगम पर भगवान विष्णु जी की प्रतिमा तथा उनके प्राचीन मंदिर एवं विष्णु कुंड भी देखे जा सकते हैं। उत्तराखंड में विष्णुप्रयाग के साथ-साथ और पंच प्रयाग हैं ,इनमें विष्णुप्रयाग प्रमुख है। विष्णुप्रयाग में स्थित श्री हरि विष्णु की मूर्ति तथा विष्णु कुंड भक्तों के मन को आकर्षित करने वाला है।
भगवान विष्णु जी त्रिदेव में से 1 देव है। यह वैदिक काल से ही सर्वोच्च देव तथा सृष्टि पालक के रूप में जाने जाते हैं। पुराणों के अनुसार एक ओर ब्रह्मा जी को इस सृष्टि का रचयिता माना जाता है, वही श्री हरि विष्णु इस सृष्टि को चलाने वाले तथा पालनहार के रूप में भक्तों में पूजे जाते हैं। विष्णु भगवान के नाम का अर्थ होता है सर्व व्यापक और सर्वोच्च। भगवान विष्णु के अन्य स्वरूप भी विद्यमान है। भगवान विष्णु का प्रत्येक रूप ज्ञानवर्धक है तथा प्रत्येक विष्णुमाया में संसार का हित छुपा हुआ है। इनके सभी आभूषणों को प्रतीकात्मक बताया गया है। भगवान विष्णु के कुछ महत्वपूर्ण आभूषण एवं उनका महत्व निम्न है-
कौस्तुभ मणि विष्णु भगवान के निर्गुण तथा निर्मल क्षेत्र स्वरूप का वर्णन करती है।
श्रीवत्स श्री हरि के मूल प्रकृति का वर्णन करता है।
गदा को बुद्धि का प्रतीक माना गया है।
भगवान विष्णु जी के शंख को पंचमहाभूतों के उदय तथा अहंकार के अंत का प्रतीक माना गया है।
धनुष इंद्रियों को उत्पन्न करने वाला आदि का प्रतीक माना जाता है।
सुदर्शन चक्र सात्विक एवं अहंकार का प्रतीक है।
वैजयंती माला पंच भूतों के संघात को दर्शाता है।
वाण ज्ञानेंद्रियों तथा कर्म इंद्रियों का प्रतीक होता है।
खड्ग विद्यामय में होने का प्रतीक है।
बद्रीनाथ मंदिर, बद्रीनाथ
श्री वेंकटेश्वरा स्वामी मंदिर, तिरुमला
रंगनाथ स्वामी मंदिर
भद्राचलम मंदिर, तेलंगाना
द्वारिकाधीश मंदिर, द्वारिका
लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर, नरसिंहपुरम
विट्ठल मंदिर, पंढरपुर
आदिकेसावा पेरूमल मंदिर, कन्याकुमारी
अत्यंत ज्ञानवर्धक एवं रोचक