सनातन धर्म (Sanatan Dharm) में माँ दुर्गा (Durga Maa) को नवदुर्गा (NavDurga) का एक रूप माना जाता है। इसी रूप में भक्तगण उनकी पूजा करते हैं। कहा जाता है कि माँ दुर्गा का जन्म दुष्टों और अत्याचारियों का अंत करने के लिए हुआ था। माँ दुर्गा शक्ति, पराक्रम और सौंदर्य का प्रतीक हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब दुष्टों और अत्याचारियों ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था तब समस्त देवता इनसे परेशान होकर ब्रम्हा जी (Lord Brahma) की शरण में गए और उनसे रक्षा करने का आग्रह किया। तब ब्रह्मा जी (Bhagwan Brahma) ने बताया कि इन दुष्टों और अत्याचारियों का अंत एक नवयौवना करेगी। तब सभी देवताओं के तेज से एक नवयौवना का जन्म हुआ। देवताओं ने उस नवयौवना को अपने अस्त्र शस्त्र और शक्तियां दी। उसके बाद उस नवयौवना ने अपने अलग-अलग नौ स्वरूपों को धारण करके दुष्टों और अत्याचारियों का संहार किया। जिसके बाद उनका नाम नवदुर्गा (Navdurga) पड़ा।
माँ दुर्गा (Maa Durga) की भक्ति करने के लिए भक्तगण मंत्रों, श्लोकों और भजनों को गाते हैं। इसके अलावा पूजा के समय उनकी आरती भी गाते हैं। आज हम आपको माँ दुर्गा की आरती (Durga Maata ki Aarti) के साथ-साथ उसका हिन्दी अर्थ भी बताने जा रहे हैं।
माँ दुर्गा की आरती हिंदी अर्थ सहित (Maa Durga Aarti In Hindi)
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव जी ॥
(हे माँ दुर्गा, आपको आपके भक्त विभिन्न नामों से पुकारते हैं। आपके असंख्य नाम हैं। जैसे गौरी माता, अम्बे माँ और श्यामा गौरी माता इत्यादि। हे माँ, शक्तिशाली त्रिमूर्ति ब्रह्मा (Brahma), विष्णु (Vishnu) और शिव (Shiva) आपका दिन-रात ध्यान करते हैं और आपकी सेवा में उपस्थित रहते हैं)
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, आपकी मांग में उज्ज्वल सिंदूर हमेशा सजा रहता है और आपके आस पास फैली हुई कस्तूरी की खुशबू भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है। आपकी स्वच्छ और बिना विकार वाली आंखें खूबसूरत चंद्रमा की तरह मंत्रमुग्ध कर देने वाली दिखती हैं)
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, आपका शरीर सोने की तरह चमकता है। साथ ही आपने गेरुआ रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं। आपके कंठ में पड़ी हुई लाल फूलों की माला आपकी सुंदरता को बढ़ा रही है)
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, आप सदैव शेर की सवारी करती हैं और हाथ में कपाल को धारण करती हैं जो तलवार और नारियल की तरह बना पात्र है। देवताओं के साथ मनुष्य और ऋषि -मुनि आपकी भक्ति करते हैं और आपकी पूजा करते हैं। आप अपने प्रताप से उनका कष्ट हर लेती हैं।
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, जब आप कानों में कुंडल और नाक में बाली पहनकर विचरण करती हैं तब आप बेहद शोभायमान दिखाई पड़ती हैं। झुमके और नाक का मोती बेहद मनोरम दिखते हैं। आपसे आने वाला दिव्य प्रकाश असंख्य सूरज और चाँद की रोशनी से भी तीव्र है)
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय..॥
(हे माँ, आपने अपने तेज प्रहार से शुंभ और निशुंभ का वध कर दिया था। इसके साथ ही आपने दैत्य महिषासुर और धुम्रिलोचन को भी मारकर तीनों लोकों का उद्धार किया है। आपकी आंखे क्रोध को दर्शाती हैं। आपके नेत्रों से धुएं की तरह धूम्र निकलती है)
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, आपने चण्ड-मुण्ड नामक दैत्यों का अंत किया था। साथ ही रक्त से उत्पन्न होने वाले बीज रक्तबीज मधु और कैताभ का सर्वनाश किया था। आपने मधु और कैटभ नाम के दो राक्षसों का वध करके तीनों लोकों से दैत्यों के डर को खत्म किया था)
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी ।
आगम-निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, आप ब्रह्मा जी (Lord Brahma), शिव जी (Lord Shiva) और विष्णु जी (Lod Vishnu) की भार्या हो। ब्रह्मदेव की भार्या के रूप में आप ब्रह्माणी हो। शिव जी की भार्या के रूप में आप रुद्राणी हो और विष्णु जी की भार्या के रूप में आप कमला रानी हो। आपको तंत्रों, शास्त्रों और वेदों में भगवान शिव की मुख्य रानी बताया गया है और आपकी प्रशंसा की गई है)
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरव ।
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरु ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, चौसठ योगिनियाँ भी आपका बखान करती हैं और आपके मृदंग और डमरू की धुन पर नृत्य करती हैं और गीत गाती हैं। साथ ही भगवान भैरव (Bhagwan Bhairava) भी आपके समक्ष नाचते हैं। आपके द्वार पर ढोल और नगाड़े बजाए जाते हैं और डमरू भी बजते हैं)
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, आप ही इस संसार की माता हो जो तीनों लोकों का पालन पोषण करती हैं। आप अपने भक्तों का दु:ख हर लेती हो और अपने भक्तों को सुख-संपत्ति देती हो)
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी ।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, आपकी चार भुजायें अत्यंत सुंदर और शोभा देने वाली हैं। भक्तों को आशीर्वाद देते समय आपकी हथेली ऊपर की ओर होती है। जो भी व्यक्ति आपकी भक्ति करता है आप उसकी समस्त मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। इस संसार में हर तरह के नर-नारी आपकी सेवा करते हैं)
कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, आपकी आरती सोने के थाल में की जाती है। आपकी आरती उतारने के लिए अगरबत्ती, कपूर और फूलबत्ती का प्रयोग किया जाता है। अरावली पर्वत का वह भाग जो चांदी की तरह चमकता है जिसे श्रीमालकेतु कहा जाता है, वहां आपका निवास स्थान है। आपकी आरती के प्रकाश के सामने करोड़ों रत्नों का प्रकाश भी फीका दिखाई देता है)
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ॥जय..॥
(हे माँ दुर्गा, जो भी भक्त अपनी भक्तिभाव और श्रद्धाभाव से आपकी आरती को गाता है, उसके ऊपर आपकी कृपा दृष्टि हमेशा बनी रहती है। आपकी कृपा से उसे सुख-संपत्ति प्राप्त होती है। शिवानंद स्वामी कहते हैं कि माँ दुर्गा की आरती करने से ऐश्वर्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है)
निष्कर्ष :
माँ दुर्गा आरती (Maa Durga Ki Aarti) का समापन, जिसे दुर्गा आरती के रूप में भी जाना जाता है, देवी के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का क्षण है। यह आरती अनुष्ठान के अंत का प्रतीक है और भक्ति और आध्यात्मिक पूर्ति की भावना के साथ है। निष्कर्ष में आमतौर पर एक अंतिम भेंट, प्रार्थना और भक्ति की हार्दिक अभिव्यक्ति शामिल होती है।
जैसा कि भक्त आरती गाने के लिए इकट्ठा होते हैं, वे माँ दुर्गा (Durga Maa) की दिव्य उपस्थिति का आह्वान करते हैं और अपनी प्रार्थना और शुभकामनाएं देते हैं। वे अपने जीवन में देवी के आशीर्वाद, सुरक्षा और मार्गदर्शन के लिए उनके प्रति अपनी गहरी श्रद्धा, प्रेम और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। आरती अक्सर दीपक की रोशनी और घंटियों के बजने के साथ होती है, जिससे एक शांत और पवित्र माहौल बनता है।
आरती की अंतिम पंक्तियां अत्यंत भक्ति और समर्पण के साथ गायी जाती हैं। वे आमतौर पर माँ दुर्गा (Durga Maa) के दैवीय गुणों और महत्व का उत्थान करती हैं। भक्त माँ दुर्गा के प्रति अपना समर्पण व्यक्त करते हैं, उनका आशीर्वाद मांगते हैं, और उनसे निरंतर समर्थन और कृपा मांगते हैं।
जैसे ही आरती समाप्त होती है, भक्त अपनी अंतिम प्रार्थना करते हैं, देवी को नमन करते हैं, और एक समृद्ध और धन्य जीवन के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं। वे आरती के माध्यम से माँ दुर्गा (Maa Durga) से जुड़ने के अवसर और उनकी उपस्थिति में होने के सौभाग्य के लिए आभार व्यक्त करते हैं।
अंत में, देवी दुर्गा (Devi Durga) की भक्ति, कृतज्ञता और समर्पण की गहरी भावना के साथ माँ दुर्गा की आरती (Maa Durga Ki Aarti) का समापन होता है। यह माँ दुर्गा के साथ आध्यात्मिक पूर्णता और जुड़ाव का क्षण है, जो भक्तों को शांति, आनंद और दिव्य आशीर्वाद की भावना देता है।
पूरब पश्चिम विशेष -
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