Tuesday, October 14

षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi)

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षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi)

षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi) हिंदू पंचांग की एक महत्वपूर्ण एकादशी है। इसे सावन या भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसका नामषटतिलाइसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन छह प्रकार के तिल का दान और सेवन विशेष रूप से पुण्यकारी माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों को समर्पित होता है और इसे करने से पाप नष्ट होकर जीवन में सुख-शांति आती है।

षटतिला एकादशी का महत्व (Significance of Shattila Ekadashi)

षटतिला एकादशी करने से व्यक्ति के जीवन में कई लाभ होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत पितृ दोष, पाप और मानसिक कष्टों को समाप्त करता है। साथ ही, इसका फल मोक्ष की प्राप्ति और भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) की कृपा के रूप में मिलता है। परिवारिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है और व्यापारिक कार्यों में भी सफलता मिलती है।

षटतिला एकादशी 2025 की तिथि और समय (Shattila Ekadashi 2025 date and time)

2025 में षटतिला एकादशी 17 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 16 अक्टूबर 2025, रात 08:50 बजे

  • एकादशी तिथि समाप्त: 17 अक्टूबर 2025, रात 07:20 बजे

  • पारण का समय: 18 अक्टूबर 2025, प्रातः 06:10 से 08:15 बजे तक

षटतिला एकादशी व्रत विधि  (Shattila Ekadashi Vrat Vidhi)

  1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।

  2. भगवान विष्णु और भगवान शिव के चित्र या मूर्ति के सामने तुलसी और फूल अर्पित करें।

  3. छह प्रकार के तिलसफेद, काले, भूरे, पिसे, तिल का तेल और तिल के लड्डू का दान करें।

  4. व्रत के दिन फलाहार करें, अनाज और मांसाहार से परहेज करें।

  5. षटतिला एकादशी कथा का पाठ सुनें या स्वयं पढ़ें।

  6. दिन के अंत में दीपक जलाकर भगवान को प्रणाम करें और अगले दिन पारण करके व्रत समाप्त करें।

षटतिला एकादशी की कथा (Shattila Ekadashi Katha)

पुराणों में वर्णित है कि एक बार एक राजा अपने राज्य और प्रजा के लिए चिंता कर रहा था। उसे निद्रा में भगवान ने दर्शन दिए और बताया कि यदि वह षटतिला एकादशी का व्रत करेगा, छह प्रकार के तिल का दान करेगा और श्रद्धा से कथा सुनेगा, तो उसके पाप नष्ट होंगे और राज्य में सुख-शांति बनी रहेगी। राजा ने व्रत किया और उसकी सारी चिंता दूर हो गई। तब से यह व्रत विशेष रूप से पुण्यकारी माना जाता है।

षटतिला एकादशी का इतिहास  (History of Shattila Ekadashi)

पुराणों के अनुसार, इस व्रत का प्रचलन अत्यंत प्राचीन है। तिल के छह प्रकारकाले, सफेद, भूरे, पिसे, तिल का तेल और तिल का लड्डूका दान करने से मनुष्य के जीवन के छह प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इस व्रत को षटतिला एकादशी कहा गया। इसे भगवान विष्णु और भगवान शिव (Bhagwan Shiv) के पूजन के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

षटतिला एकादशी के लाभ (Shattila Ekadashi ke Labh)

  • सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं।

  • मानसिक शांति और सुख-समृद्धि मिलती है।

  • पितृ दोष समाप्त होता है।

  • व्यापारिक और पारिवारिक जीवन में सफलता मिलती है।

  • भगवान शिव और विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

FAQ’S

प्रश्न 1: षटतिला एकादशी कब मनाई जाती है?

2025 में षटतिला एकादशी 17 अक्टूबर, शुक्रवार को है। यह व्रत सावन या भाद्रपद माह की शुक्ल एकादशी को पड़ता है। इस दिन व्रत करने से जीवन में सुख, शांति और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

प्रश्न 2: षटतिला एकादशी व्रत का महत्व क्या है?

षटतिला एकादशी व्रत करने से सभी पाप नष्ट होते हैं। यह व्रत मोक्ष की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है। साथ ही, परिवार में सुख-शांति, व्यवसाय में सफलता और पितृ दोष से मुक्ति भी मिलती है।

प्रश्न 3: षटतिला एकादशी व्रत कैसे करना चाहिए?

इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु और शिव की पूजा करनी चाहिए। छह प्रकार के तिल का दान करें। फलाहार करें और कथा का पाठ सुनें। सायंकाल दीपक जलाकर प्रार्थना करें। अगले दिन पारण करके व्रत समाप्त करें।

प्रश्न 4: क्या स्त्रियाँ और पुरुष सभी यह व्रत कर सकते हैं?

हाँ, स्त्री, पुरुष, युवा या वृद्धसभी श्रद्धा से यह व्रत कर सकते हैं। इस व्रत का फल सभी को समान रूप से मिलता है। विशेषकर पितृ दोष निवारण और जीवन में सुख-शांति के लिए यह अत्यंत फलदायी है।

प्रश्न 5: षटतिला एकादशी कथा क्यों सुननी चाहिए?

कथा सुनने से व्रत का पूर्ण फल मिलता है। श्रद्धा से कथा सुनने पर भगवान विष्णु और शिव की कृपा प्राप्त होती है। पाप नष्ट होते हैं और मनुष्य जीवन में सुख-शांति, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति पाता है।

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