अपने शुद्ध आत्म स्वरूप को जानने के लिए मन और चित्त के स्तर पर हो रही हलचलों को शांत करना जरूरी है, इसी को वृत्ति निरोध कहते हैं। योग साधना चित्त वृत्तियों को ठहराने का उपाय है। इन वृत्तियों के ठहरने से भीतर स्थित आत्म स्वरूप का अनुभव होने लगता है, उसी को योग कहते हैं। अतः चित्तवृत्तियों का निरोध ही योग है।महर्षि पतंजलि ने 195 योगसूत्रों के माध्यम से इसे जनमानस को समझाया है । इन योग सूत्रों की व्याख्या स्वामी विवेकानन्द जी ने अपनी पुस्तक “ राजयोग “ में की है। हमसब नागरिकों को इसे ज़रूर पढ़ना चाहिये ।
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