हिंदू धर्म (Hindu Dharam) में वटसावित्री पूजा (Vatsavitri Puja)और व्रत का विशेष महत्त्व है। मान्यता है कि, वट वृक्ष की पूजा करने से और वटसावित्री का व्रत रखनेवाली स्त्रियों के पति की आयु में वृद्धि होती है और पति पर आए संकट टल जाते हैं, पति को हर कार्य में सफ़लता मिलती है। इसके अतिरिक्त इस व्रत और पूजा से पति और पत्नी के बीच में प्रेम बढ़ता है, वैवाहिक जीवन में मिठास बनी रहती है। पुराणों के अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा (Brahma), विष्णु (Vishnu) और महेश (Mahesh) तीनों का वास होता है। भगवान बुद्ध (Bhagwan Budhha) ने इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था।
१) वटसावित्री व्रत वाले दिन व्रत रखनेवाली स्त्रियाँ प्रातः स्नान क्रिया से मुक्त होकर सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण कर बरगद के पेड़ की जड़ों के पास सावित्री और सत्यवान का चित्र रखें या मूर्ति स्थापित करें और फिर विधिवत पूजा करें।
२) अब लाल वस्त्र सावित्री-सत्यवान की प्रतिमा को ओढ़ाएँ, लाल रंग (सिंदूर), रंगबिरंगे फूल, अक्षत, भीगे चने, फल, मिठाई, रोली इत्यादि प्रतिमा के समक्ष अर्पित करें।
३) प्रतिमा को धूप-दीप दिखाएँ।
४) पूजा के बाद हाथ में भीगे चने लेकर स्त्रियाँ सत्यवान-सावित्री की कथा सुनें।
५) कथा सुनते समय बीच-बीच में सत्यवान-सावित्री की प्रतिमा को छोटे लकड़ी के पंखे से हवा करें।
६) कथा के पश्चात् बरगद के पेड़ की जड़ों को कच्चे दूध, शीतल जल से सींचें।
७) तदुपरांत, कच्चे सूत का धागा या मोली को पेड़ के तने में लपेटकर सात बार परिक्रमा करें।
मान्यता है कि, इस व्रत और पूजा करनेवाली व्रता को भी देवी सावित्री की भाँति अचल सुहाग के वरदान की प्राप्ति अवश्य होती है।
हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार, वटसावित्री व्रत(Vatsavitri Vrat) प्रत्येक वर्ष में दो बार रखा जाता है। इनमें से एक व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को और दूसरा व्रत पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। वर्ष २०२३ में, पहला वटसावित्री व्रत १९ मई, शुक्रवार को रखा जाएगा और दूसरा ३ जून, शनिवार को रखा जाएगा।
इस वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का आरंभ १८ मई २०२३, गुरूवार की रात ०९ बजकर ४२ मिनट से होगा और तिथि का समापन १९ मई २०२३, शुक्रवार की रात ०९ बजकर २२ मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या वटसावित्री(Jyeshth Amavsya Vatsavitri Vrat 2023) व्रत १९ मई २०२३ को रखा जाएगा। इसके अतिरिक्त इस दिन शोभन योग संध्या के ०६ बजकर १७ मिनट तक रहेगा। मान्यता है कि इस योग की अवधि में पूजा-पाठ का विशेष महत्त्व है। ज्येष्ठ अमावस्या वटसावित्री व्रत मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, पंजाब, दिल्ली, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, हरियाणा राज्य की स्त्रियों द्वारा रखा जाता है।
वर्ष २०२३ में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का आरंभ ३ जून २०२३, शनिवार की सुबह ११ बजकर १६ मिनट पर होगा और इसका समापन ०४ जून २०२३, रविवार की सुबह ०९ बजकर ११ मिनट पर होगा। यदि बात करें वटसावित्री व्रत की तो ज्येष्ठ पूर्णिमा वटसावित्री व्रत(Jyeshth Purnima Vatsavitri Vrat 2023) ३ जून २०२३, शनिवार को रखा जाएगा। इस वर्ष दिनांक ३ जून २०२३ को दोपहर के ०२ बजकर ४८ मिनट तक शिव योग भी रहेगा। माना जाता है कि इस शुभ योग में पूजा-पाठ करने से व्यक्ति की मनोकामनाएँ पूरी होती है। इस दिन रखे जानेवाले वटसावित्री व्रत को वट पूर्णिमा व्रत के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह व्रत पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा वटसावित्री व्रत विशेष रूप से गुजरात और महाराष्ट्र राज्य की स्त्रियाँ रखती हैं।
हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार, वटसावित्री व्रत(Vatsavitri Vrat) प्रत्येक वर्ष में दो बार रखा जाता है। इनमें से एक व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को और दूसरा व्रत पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। वर्ष २०२४ में, पहला वटसावित्री व्रत (ज्येष्ठ अमावस्या वटसाविsत्री व्रत) ६ जून, गुरूवार को रखा जाएगा और दूसरा (ज्येष्ठ पूर्णिमा वटसावित्री व्रत) २१ जून २०२४, शुक्रवार को रखा जाएगा।
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