श्री राम (Shri Ram)

Shri Ram

श्री राम (LORD RAM)

दशरथ पुत्र श्री राम (Dashrath Putra Shri Ram) का जन्म अयोध्या में हुआ था। श्री राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा थी - रघुकुल रीति सदा चलि आई प्राण जाई पर बचन न जाई । कुछ ग्रन्थ बताते हैं की श्री राम (Shri Ram) त्रेता युग में जन्मे थे। श्री राम की महाकाव्य रचना, रामायण, आमतौर पर सातवीं और चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच की है। श्री राम पर की गयी एक और महाकाव्य रचना, श्रीरामचरितमानस, सोल्ह्वी शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में रची गयी थी। 

श्री राम का बचपन (Birth Of Lord Ram)

जब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल, शनि, बृहस्पति, तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थान पर विराजमान थे और कर्क लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति स्थित था, तभी महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो नील वर्ण, चुम्बकीय आकर्षण वाले, अत्यंत तेजस्वी, परम कांतिवान तथा अत्यंत सुन्दर था। वह शिशु श्री राम थे। इस दिन को राम नवमी (Ram Navami) भी कहा जाता है। इसके पश्चात शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी महारानी सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया। चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ के द्वारा किया गया तथा उनके नाम रामचंद्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे गए। 

श्री राम (Shri Ram) का जन्म वर्तमान उत्तर प्रदेश के जिला अयोध्या में हुआ था। जन्म के कुछ वर्षों तक श्रीराम अपने भाइयों के साथ अयोध्या के राजमहल में रहे। जब उनकी आयु शिक्षा ग्रहण करने की हुई तब उनका उपनयन संस्कार करके गुरुकुल भेज दिया गया। धर्म के मार्ग पर चलने वाले श्री राम ने अपने तीनों भाइयों के साथ गुरू वशिष्‍ठ से शिक्षा प्राप्‍त की।  वे गुरुकुल में बाकि आम शिष्यों की भांति शिक्षा ग्रहण करते, भिक्षा मांगते, भूमि पर सोते, आश्रम की सफाई करते व गुरु की सेवा करते थे। जब श्रीराम विद्या ग्रहण करके अयोध्या वापस आ गए, तब ब्रह्मर्षि विश्वामित्र अयोध्या पधारे।

उन्होंने दशरथ को बताया कि उनके आश्रम पर आए दिन राक्षसों का आक्रमण होता रहता है जिससे उन्हें यज्ञ आदि करने में बाधा हो रही हैं। अतः वे श्रीराम को उनके साथ चलने की आज्ञा दे ताकि राम रक्षा कर सके। तब दशरथ ने कुछ आनाकानी करने के बाद श्रीराम को उनके साथ चलने की आज्ञा दे दी। राम के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी इस कार्य में उनके साथ थे। राम ने उस समय ताड़का नामक राक्षसी को मारा तथा मारीच को पलायन के लिए मजबूर किया और अहिल्या माता का उद्धार कर उनको मुक्ति दिलायी थी।

सीता स्वयंवर और सीता राम विवाह (Sita Ram Vivah)

इसके बाद ब्रह्मर्षि विश्वामित्र श्री राम व लक्ष्मण को लेकर मिथिला राज्य गए जहाँ माता सीता (Mata Sita) का स्वयंवर था। उस स्वयंवर में महाराज जनक ने एक प्रतियोगिता रखी थी कि जो भी वहां रखे शिव धनुष (Shiv Dhanush) को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसका विवाह उनकी सबसे बड़ी पुत्री सीता से हो जाएगा। जब श्रीराम ने माता सीता को बगीचे में फूल चुनते हुए देखा था। वे दोनों जानते थे कि वे भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी का अवतार हैं लेकिन उन्हें मनुष्य रूप में अपना धर्म निभाना था। प्रतियोगिता का शुभारम्भ हुआ और एक-एक करके सभी राजाओं ने प्रयास किया परन्तु कोई भी ऐसा बाहुबली नही था जो उस धनुष को उठा सके। अंत में विश्वामित्र जी ने श्रीराम को वह धनुष उठाने की आज्ञा दी। गुरु की आज्ञा पाकर श्रीराम ने शिव धनुष को प्रणाम किया व एक ही बारी में धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे जिससे शिव धनुष (Shiv Dhanush) टूट गया।  इसके पश्चात श्रीराम का विवाह माता सीता से हो गया। 

राम-लक्ष्मण-सीता वनवास (Ram-Laxman-Sita exile)

अयोध्या में राम और सीता सुखपूर्वक रहने लगे। लोग राम को बहुत चाहते थे। उनकी मृदुल, जनसेवा से युक्‍त भावना और न्‍यायप्रियता के कारण उनकी विशेष लोकप्रियता थी। राजा दशरथ को वानप्रस्‍थ की ओर अग्रसर होना था। श्री राम को उनके पिता दशरथ ने राज्यसभा में बुलाया और उनके राज्याभिषेक करने का निर्णय सुनाया गया। कैकेयी की दासी मन्थरा ने कैकेयी को भरमाया कि राजा तुम्‍हारे साथ गलत कर रहें है।  कैकेयी जिन्होंने दो बार राजा दशरथ की जान बचाई थी और दशरथ ने उन्हें यह वर दिया था कि वो जीवन के किसी भी पल उनसे दो वर मांग सकती हैं। राम को राजा बनते हुए और भविष्य को देखते हुए कैकेयी चाहती थी कि उनका पुत्र भरत ही अयोध्या का राजा बने, इसलिए उन्होंने महाराज दशरथ द्वारा राम को १४ वर्ष का वनवास दिलाया और अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राज्य माँगा। वचनों में बंधे महाराज दशरथ को विवश होकर यह स्वीकार करना पड़ा। श्री राम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया। श्री राम की पत्नी देवी सीता और उनके भाई लक्ष्मण जी भी उनके साथ वनवास गये थे। 

वनवास के समय, रावण ने सीता जी का हरण किया था। रावण एक राक्षस तथा लंका का राजा था। एक दिन माता सीता को अपनी कुटिया के पास एक स्वर्ण मृग घूमते हुए दिखाई दिया तो माता सीता ने उसे अपने लिए लाने का आग्रह किया। यह सुनकर भगवान राम उस मृग को लेने निकल पड़े लेकिन यह रावण की एक चाल थी। वह मृग ना होकर रावण का मायावी मामा मारीच था। जब श्रीराम को उसके मायावी होने का अहसास हुआ तो उन्होंने उस पर तीर चला दिया। तीर के लगते ही वह मृग राम की आवाज़ में लक्ष्मण-लक्ष्मण चिल्लाने लगा। लक्ष्मण माता सीता की रक्षा के लिए वहां लक्ष्मण रेखा खींचकर चले गए। लक्ष्मण के जाते ही पीछे से रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया व अपने पुष्पक विमान में बिठाकर लंका ले गया। जटायु ने उन्हें बताया कि लंका का राजा रावण माता सीता का अपहरण करके दक्षिण दिशा की ओर लेकर गया हैं। 

इसके बाद श्रीराम (Bhagwan Ram) माता सीता को ढूंढते हुए शबरी की कुटिया तक पहुंचे। जब शबरी ने अपने झूठे बेर श्रीराम को खाने को दिए तो लक्ष्मण को घृणा हुई लेकिन श्रीराम ने ख़ुशी-ख़ुशी हुए वह बेर खा लिए। 

राम और हनुमान का मिलन (Lord Rama and Hanuman Meet)

शबरी से सुग्रीव का पता लेकर वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे जहाँ उनकी भेंट हनुमान (Hanuman Ji) से हुई। हनुमान के द्वारा उनकी मुलाकात सुग्रीव व उनके मंत्री जामवंत से हुई। रावण समुद्र पार लंका नामक नगरी में रहता था। हनुमान जी ही वह समुद्र पार करने में सक्षम थे। उन्होंने “जय श्री राम” (Jai Shri Ram) का नारा लगाया, अपना विशालकाय रूप धारण किया और सीता माता (Sita Mata) को खोजने के लिए समुद्र पार कर लंका पहुचे। वहां सीता माता को आश्वासन देकर मेघनाथ से युद्ध किया और लंका दहन किया। तत्पश्चात राम ने वानर सेना की सहायता से समुन्दर पर रामसेतु बनाया और लंका पर चढाई की। सेतु से समुन्द्र पार करते वक़्त हनुमान जी ने नारा लगाया – “कहत हनुमान जय श्री राम”। पूरी वानर सेना श्री राम के नेतृत्व में यह नारा लगाते हुए लंका में प्रवेश कर गयी। राम और रावण का युद्ध हुआ। अंत में श्री राम ने हनुमान, विभीषण और वानर सेना की मदद से रावण पर विजय प्राप्त की जिसमे रावण के बन्धु – बान्धव और उनके वंशज मारे गए तथा लौटते समय विभीषण को लंका का राजा बनाकर अच्छे शासक बनने के लिए मार्गदर्शन किया। राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और कुछ वानर ने जन पुष्पक विमान से अयोध्या की ओर प्रस्थान किया। वहां सबसे मिलने के बाद राम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। पूरा राज्य कुशल समय व्यतीत करने लगा।

जब राम जी (Bhagwan Ram Ji) का जीवन पूर्ण हो गया,  तब उन्होंने यमराज की सहमति से सरयू नदी के तट पर गुप्तार घाट में अपने देह का त्याग कर दिया और पुनः बैकुंठ धाम में विष्णु रूप ( (Bhagwan Vishnu) में विराजमान हो गये। उनके आने मात्र से ही पूरा माहौल पुलकित हो उठा और प्रकृति में परिवर्तन की एक लहर दौड़ गई। 

वैसे तो श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या है, और देशभर से उनके भक्त वहां दर्शन करने आते हैं, पर उनके कुछ प्रसिद्ध मंदिर इस प्रकार हैं:-

श्री राम मंदिर, अयोध्या

राजा राम मंदिर, मध्य प्रदेश

कालाराम मंदिर, नासिक 

रघुनाथ मंदिर, जम्मू

रामास्वामी मंदिर, तमिलनाडु

त्रिप्रयार मंदिर, केरल 

सीता राम्चंद्रस्वामी मंदिर, तेलंगाना

कोदंडा रामस्वामी मंदिर, कर्नाटक

रामचौरा मंदिर, हाजीपुर 

 चित्रकूट राम मंदिर, चित्रकूट

 रामटेक मंदिर, महाराष्ट्र

 विराट रामायण मंदिर, पटना

 

पूरब पश्चिम विशेष

भगवान विष्णु   |   भगवान शिव   |   भगवान गणेश   |  भगवान श्री कृष्ण    |  ब्रह्म देव    |   गौतम बुद्ध 
 
भगवान् विश्वकर्मा   |  सूर्य देव   वैष्णो देवी  |  पंचमुखी हनुमान  | बाबा खाटू श्याम |  गोवर्धन पूजा   

शरद पूर्णिमा    |   कार्तिक पूर्णिमा   |   गणेश चालीसा     |   चित्रगुप्त पूजा   | सरस्वती पूजा   

श्री विष्णु चालीसा   |     वैष्णो देवी    |    लक्ष्मी आरती   |    देवी दुर्गा  |  हनुमान जी के 12 नाम

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