गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) हिंदुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक हैं। यह भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है जिसमें से भारत के महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी की छटा ही निराली होती है। गणेश चतुर्थी के अवसर पर बाजारों में रौनक बढ़ जाती है तथा भक्तों की गणेश भगवान के प्रति श्रद्धा देखने को मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री गणेश (Bhagwan Shri Ganesh) के जन्मदिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी की पूजा 9 दिनों तक चलती है। जिनमें सार्वजनिक रूप से पंडाल बना कर गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना की जाती है तथा उनका पूजन किया जाता है, दूर-दूर से भक्त गणेश जी के दर्शन के लिए इन पंडालों में उपस्थित होते हैं। 9 दिनों पश्चात गणेश मूर्ति आयोजकों द्वारा धूमधाम से विसर्जित की जाती है।
विसर्जन जन्म और मृत्यु के चक्र का प्रतीक है। यह जीवन की वास्तविकता के तथ्यों के इर्द-गिर्द घूमती है। इसके अलावा, विसर्जन इस बात का प्रतीक है की इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। विसर्जन की परंपरा इस बात की याद दिलाती है कि इस ग्रह पर पैदा हुए सभी लोग एक दिन नष्ट हो जाएंगे।
वही पौराणिक कथाओं के अनुसार गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के दिन से ही भगवान् गणेश (Bhagwan Ganesh) ने महाकाव्य महाभारत लिखने का कार्य शुरू हुआ था और गणेश जी ने महर्षि वेदव्यास से कहा था कि जब वह लिखना आरंभ करेंगे तो कलम नहीं रोकेंगे, यदि कलम रुक गई तो वहीं लिखना बंद कर देंगे। इस तरह महाभारत का लेखन शुरू हुआ और लगातार १० दिन तक चला। अनंत चतुर्दशी के दिन जब महाभारत को लिखने का काम सम्पन हुआ तो भगवान् गणेश का शरीर जड़वत हो चुका था, स्तीर्था के कारण उनके शरीर पर धूल-मिट्टी जम गई थी। तब भगवान् गणेश ने अपना शरीर साफ करने के लिए सरस्वती नदी में स्नान किया था।इसलिए भगवान् गणेश की प्रतिमा की स्थापना १० दिन के लिए किया जाता है और फिर १० के बाद गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।
शिव पुराण (Shiv Purana) के अनुसार भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को श्री गणेश जी का जन्म हुआ था। इसके अनुसार माता पार्वती (Mata Parvati) ने अपने उबटन के मैल से एक बालक का निर्माण किया था तथा उसे अपना द्वारपाल बनाया। प्रवेश द्वार की रक्षा करते वक्त भगवान शिव जी प्रवेश द्वार में प्रवेश करने की चेष्टा करने लगे इस दौरान उस बालक ने भगवान शिव को रोकने की कोशिश की। इस दौरान भगवान शंकर तथा उस बालक के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। जिसमें भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उसका सिर काटकर बालक के शरीर से अलग कर दिया। यह समाचार सुनने के बाद माता पार्वती क्रोधित हो उठी । माता पार्वती के क्रोध से सभी देवता भयभीत हो गए और शंकर जी से विनती करने लगे की माता पार्वती के विनाशकारी क्रोध को शांत किया जाए।
देवी पार्वती (Devi Parvati) को के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव (Bhagwan Shiv) ने श्री हरि विष्णु (Shree Hari Vishnu) को आज्ञा दी की उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीवित प्राणी का सर काट कर भगवान शिव के समक्ष लाया जाय। भगवान शिव के कहे अनुसार विष्णु को जीवित प्राणी के रूप में एक हाथी मिला जिसका सिर काटकर श्री हरि विष्णु ने भगवान शिव के समक्ष प्रस्तुत किया। भगवान शिव ने बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर दिया। जीवित बालक को देखकर माता पार्वती प्रसन्न हुई तथा उसे अपने हृदय से लगा लिया। इसी दौरान भगवान गणेश को प्रथम पूज्य होने का वरदान भी मिला। भगवान शंकर ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि तुम विघ्नहर्ता (Vighanharta) के रूप से में जाने जाओगे तथा सभी गणों के अध्यक्ष रहोगे । भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को उत्पन्न होने के कारण इस तिथि में व्रत करने वाले मनुष्यों के सभी संकट दूर होंगे। ऐसा माना जाता है कि हर वर्ष श्री गणेश चतुर्थी का व्रत करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा उनके सभी दुःख विध्नहर्ता द्वारा हर लिये जाते हैं।
साल 2024 में गणेश चतुर्थी 7 सितंबर, शनिवार को मनाई जाएगी। साल 2024 में चतुर्थी तिथि 6 सितंबर को दोपहर 3:01 बजे से शुरू होगी और 7 सितंबर को शाम 5:37 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि मान्य होने के कारण गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को मनाई जाएगी।
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