मां काली (Maa Kali) को काली माता (Kali Mata), माता जगदंबा की महामाया, श्मशान की देवी, महाकाल की काली, भयानक अंधकार की देवी, माता कालिका आदि कितने ही नामों से जाना जाता है।
जिस तरह काल से कोई नहीं बच सकता उसी तरह मां काली की नजर से कोई भी दुष्ट और पापी नहीं बच सकता। इस धरती पर धर्म की रक्षा करने के लिए और पापियों का नाश करने के लिए ही मां काली प्रकट हुई थी।
शास्त्रों के अनुसार मां काली (Maa Kali) को देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है। मां भगवती (Maa Bhagwati) ने दुष्ट आसुरी शक्तियों का सर्वनाश करने के लिए विकराल रूप धारण किया था, जिन्हें सारी दुनिया मां काली के नाम से जानती है। मां काली की आराधना से मनुष्य के सारे डर, भय दूर हो जाते है।
मां काली माता जगदम्बा की महामाया (Jagdamba ki Mahamaya) ही थी, जो शुंभ निशुंभ से युद्ध के दौरान रक्तबीज असुर का संहार करने के लिए प्रकट हुई थी।
'काली' शब्द के दो अर्थ है, काल और काला रंग। विषधारी भगवान शिव (Bhagwan Shiva) के क्रोधित रूप के कारण, उनके तीसरे नेत्र से उत्पन्न हुई मां काली को काला रंग मिला था और 'काल' का अर्थ होता है, समय। तो 'काली' का अर्थ हुआ, समय और काल, जो सभी को अपने में निगल जाता है। आज तक कोई भी काल के समय को नहीं टाल पाया है।
मां काली (Maa Kali) के केवल हुंकार मात्र से असुरों की सेना जल कर भस्म हो गई थी और मां के क्रोध की आग से तीनों लोक जल उठे थे।
मां पार्वती (Maa Parvati) ने मां जगदम्बा के शुंभ निशुंभ से युद्ध के दौरान रक्तबीज नाम के असुर का वध करने के लिए काली का अवतार (Kali ka Avatar) धारण किया था। रक्तबीज ने कठोर तपस्या करके वरदान प्राप्त किया था कि उसके रक्त की बूंद जहां भी गिरेगी वहीं उसके समान बलशाली दानव पैदा हो जाएगा ताकि कोई भी इतनी आसुरी शक्तियों से ना लड़ पाए और उसे ना हरा पाएं। इस तरह रक्तबीज को लगा था कि कोई भी उसे नहीं मार पाएगा और वह अमर हो जाएगा। फिर मां काली (Kali Maa) ने रक्तबीज के रक्त को और देवी के प्रहार से उसके रक्त की हर बूंद को सीधे अपने कंठ में धारण किया, एक भी बूंद को जमीं पर नहीं गिरने दिया।
इसी से मां काली की जिह्वा सुर्ख लाल हो गई और उन्हें असुरों के खून की प्यासी भी कहा गया। रक्तबीज के वध के बाद भी महाकाली के क्रोध ने इतना विकराल रूप ले लिया था कि उनका क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था। उनको शांत करना भी आवश्यक था। परन्तु सब उनके पास जाने से डर रहे थे। तब सभी देवतागण महादेव (Mahadev) की शरण में पहुंचे और उनसे मां काली को शांत करने के लिए विनती की।
महादेव ने महाकाली (Mahakali) को शांत करने के सभी प्रयासों में विफल हो गए थे, तब भगवान शिव मां काली के मार्ग पर लेट गए और क्रोध में आगे बढ़ रही महाकाली को जैसे ही यह आभास हुआ की भगवान शिवजी के सीने पर उनका चरण स्पर्श हुआ तो उनकी जिह्वा (जीभ) बाहर आ गई और इसके बाद मां काली का क्रोध स्वत: शांत हो गया।
भगवान शिव (Bhagwan Shiv) के विष के असर से मां का श्याम वर्ण है, गले में खोपड़ियों और कटे हुए सिरों की माला, कंठ में कराल विष का चिन्ह, अनेकों भुजाओं में अनेकों अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए है। उनकी असुरों के रक्त से सुर्ख लाल जिह्वा गर्म खून के लिए तरस्ती बाहर लटकी हुई दिखाई देती है।
मां काली का भयंकर और विशाल रूप देखकर एक बार तो देवता भी घबरा गए थे।
मां काली के 4 रूप बताए गए है- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली।
मां काली की पूजा (Maa kali ki puja) वैसे तो पूरे भारत में की जाती है लेकिन बंगाल और असम में मां काली को विशेष रूप से पूजा जाता है। बड़े बड़े पंडाल सजाकर कई दिनों तक उत्सव मनाया जाता है और मां काली की आराधना की जाती है।
मां काली का विशेष दिन अमावस्या और वार शुक्रवार बताया गया है, इस दिन मां काली की पूजा का विशेष महत्व है। गुप्त नवरात्री के पहले दिन भी मां काली की पूजा करने का विधान है। जो लोग तंत्र शक्तियां प्राप्त करना चाहते है उनके लिए तो इस दिन मां काली की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि मां काली को ही तांत्रिक सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी माना जाता है।
माँ काली के 108 नाम है। मां काली के 108 नामों में काली, कृपालिनी, कालिका, करालिका, कामाख्या, कामेश्वरी, कलकण्ठी, कंकाली, कंकिनी, काकिनी आदि प्रमुख है। जो भी भक्त प्रतिदिन माँ काली के 108 नामों का जाप करता है, मां काली उसकी सारी चिंता, भय और कष्टों को हर लेती है।
।। काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोऽस्तुते ।।
।। ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा ।।
।। ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।।
उपरोक्त मंत्र चिंतामणि काली के प्रमुख मंत्रों में से एक है।
शुद्ध मन, तन से सुबह और शाम माँ काली की आरती, स्तुति करने से करने से भक्तों के सारे कष्ट और संकट दूर हो जाते है।
मां काली के दरबार (Maa Kaali ka Darbaar) में जो एक बार हाजिरी लगा देता है, उसका नाम-पता दर्ज हो जाता है। मां के दरबार में दान भी मिलता है, तो दंड भी, आशीर्वाद भी मिलता है तो शाप भी मिल सकता है। मां काली के दरबार में जो भी वादा करके आएं, उसे पूरा ज़रूर करें। किसी मन्नत या मनोकामना के बदले यदि कुछ करने का वचन दें, उसे पूरा अवश्य करें नहीं तो काली माता रुष्ट हो जाती है और आप उनके क्रोध के शिकार हो जाते है।
असुरों का संहार करने वाली, पापियों का विनाश करने वाली, भक्तों के सारे संकट हरने वाली, मां काली को शत शत नमन है।
पूरब पश्चिम विशेष -
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सरस्वती पूजा | वास्तु हवन | नवरात्रि हवन | महालक्ष्मी हवन | गायत्री हवन
यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अद्भुत विषय है जिसके बारे में आपने विस्तृत और ज्ञानवर्धक जानकारी प्रस्तुत की है। माँ काली एक शक्ति स्वरूपी देवी हैं, जिनका अवतार देवी दुर्गा के रूप में भी जाना जाता है। उनकी पूजा और अर्चना से मन को शांति और शक्ति की प्राप्ति होती है। आपकी वेबसाइट पर प्रस्तुत की गई विस्तृत जानकारी से मैंने माँ काली के बारे में और अधिक जाना और समझा है।