सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple)

Somnath Temple

सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple)

भारत प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों और संतो की तपोभूमि रहा है। यहां अनेकों तीर्थ स्थल है जो लोगों की श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। ऐसा ही एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है सोमनाथ का मंदिर (Somnath ka Mandir) जिसका उल्लेख स्कंदपुराण, श्रीमद्‍भागवत गीता, शिवपुराण और ऋग्वेद आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है।

चंद्रदेव द्वारा निर्मित, भारत का यह प्राचीन और ऐतिहासिक शिव मंदिर (Shiv Mandir) हिंदुओं के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। पुराणों के अनुसार शिवजी (Shiv ji) जहाँ-जहाँ स्वयं प्रकट हुए उन स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव (Bhagwan Shiv) के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है।  

यह वह पावन भूमि है, जहां श्री कृष्ण (Bhagwan Shri Krishna) ने देह त्याग किया था इसलिए इस देवभूमि से करोड़ों हिंदुओं की आस्था जुड़ी हुई है।

सोमनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व
(Religious Significance of Somnath Temple)

यह मंदिर पितरों के श्राद्ध, तर्पण, तुलादान आदि कार्यों के लिए प्रसिद्ध है। चैत्र मास, भाद्रपद और कार्तिक मास में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। यहां तीन नदियों हिरन, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है जिसे त्रिवेणी (Triveni) कहते है और इस त्रिवेणी स्नान का भी विशेष महत्व है। सोमनाथ का मंदिर (Somnath ka Mandir) एक तपोभूमि है जहां सोम ने श्राप से मुक्ति के लिए तपस्या की थी। सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) गर्भ ग्रह, सभा मंडप और नृत्य मंडप तीन भागों में विभाजित है। सोमनाथ मंदिर में पहले शिवलिंग बिना आधार के हवा में स्थापित था। यह शिव (Shiv) की शक्ति और वास्तुकला का अनोखा संगम था।

आरती (Aarti)

यहां आरती शब्दों से नहीं बल्कि शंख, नगाडो, शहनाई एवं घंटियों की ध्वनि के साथ संगीत से होती है। 

सोमनाथ मंदिर का नामकरण 
(Somnath Temple Naming)

शिव (Bhagwan Shiv) के इस भव्य मंदिर का निर्माण त्रेता युग में श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष में देवी अनुसूया और ऋषिवर अत्री के पुत्र सोम (जो चंद्रदेव का नाम था) ने करवाया था और वह महादेव शिव (Mahadev Shiv) को अपना नाथ मानते थे इसलिए इस मंदिर का नाम सोमनाथ हुआ। 

सोम ने तप करके अपना प्रभाव वापिस हासिल किया था इसीलिए इस मंदिर को “प्रभासतीर्थ” या “प्रभास पाटण” भी कहते है।

सोमनाथ मंदिर की भव्यता
(Grandeur of Somnath Mandir)

श्री सोमनाथ मंदिर (Shri Somnath Mandir) एक भव्य, समृद्ध और वैभवशाली हिंदू मंदिर (Hindu Mandir) है। इस मंदिर में 1 टन से भी भारी सोने की घंटी है जिसे सोने की भारी छड़ी से ही बजाया जाता है। इस मंदिर का शिखर 150 फुट ऊंचा है। शिखर पर जो कलश स्थापित है उसका वजन लगभग 10 टन है। शिखर पर 27 फुट ऊंची ध्वजा लहरा रही है। मंदिर प्रवेश के ठीक पहले अतिसुन्दर दिग्विजय द्वार है। 

सोमनाथ मंदिर का निर्माण
(Construction of Somnath Temple)

शिवा (Shiva) के इस मंदिर को लंकापति रावण (Lankapati Ravan) ने रजत (चांदी) का, श्री कृष्ण ने काष्टका, भीमनाथ सोलंकी ने शिला का बनवाया। इसके बाद राजा कुमार पाल के काल में भाव बृहस्पति ने मंदिर को बड़े पैमाने पर नवसर्जित करवाया। 10 वीं शताब्दी में इस मंदिर के द्वार, गुंबद, छत, दीवारें, घंटी सब कुछ स्वर्ण जड़ित था। 

सोमनाथ महादेव (Somnath Mahadev) का यह मंदिर बहुत ही वैभवशाली और समृद्ध था इसलिए मुगलों, पोर्तुगीजो और दिञस्त्रो ने अनेकों बार हमला करके इसे लूटा और  इसका हर बार पुनर्निर्माण हुआ। हमलों और पुनर्निर्माण का सिलसिला सदियों तक चलता रहा। स्वतंत्रता के बाद ही यह सिलसिला रुका। 

13 नवंबर 1947 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जामनगर के राजा दिग्विजय सिंह के सहयोग से मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सोमनाथ मंदिर के गर्भ गृह में प्राण प्रतिष्ठा की और ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया। उस समय 108 नदियों के जल से भगवान शिव का अभिषेक किया गया था।   

जगह (Location of Somnath Temple) 

सोमनाथ का मन्दिर (Somnath ka Mandir) गुजरात के दक्षिण में (सौराष्ट्र) प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र के अन्तर्गत प्रभास में स्थित है। शिव का यह मंदिर समुद्र किनारे स्थित है।

त्रेता युग से आज तक सोमनाथ मंदिर में भगवान, भक्त और भक्ति की आराधना गूंजती रहती है। मंदिर की दीवारों से टकराती समुद्र की लहरों की ध्वनि,आतंरिक साज सज्जा, सुन्दर नक्काशी और उत्कृष्ट कारीगरी कला और संस्कृति का अनूठा संगम है। 

सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) पहुंचकर सब कुछ भूलकर, एकाग्रचित मन से, अपलक ज्योतिर्लिंग को निहारे और शिव से साक्षात्कार का अनुभव करे।

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1 Comments:

  1. Ganesh Jumar Ganesh Jumar says:

    प्राचीन, भव्य, और धार्मिक स्थल। भक्तों को शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव।

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