ओंकारेश्वर मन्दिर (Omkareshwar Temple)

Omkareshwar Temple

ओंकारेश्वर मन्दिर (Omkareshwar Temple)

ओंकारेश्वर मन्दिर (Omkareshwar Temple) मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा (Narmada) नदी के तट पर स्थित है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है जो मंधाता (Mandhata) नाम के द्वीप पर स्थित है। यह द्वीप ॐ के आकार में बना है जो नर्मदा नदी पर स्थित है। यहां प्रतिदिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। ओंकारेश्वर मन्दिर के आस-पास 68 तीर्थ स्थल हैं, यहां भी भक्त अपनी आस्था के अनुसार दर्शन करने जाते हैं। 

ओंकारेश्वर मन्दिर से जुड़ी धार्मिक कथा (Religious story related to Omkareshwar temple)

कहा जाता है कि राजा मान्धाता (King Mandhata) ने ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के तट पर स्थित पर्वत पर शिव जी की घोर तपस्या की थी। राजा मान्धाता (King Mandhata) की तपस्या से भगवान शिव (Lord Shiva) प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा से वरदान मांगने को कहा। तब राजा मान्धाता ने भगवान शिव से उस पर्वत पर निवास करने का आग्रह किया। जिसके बाद भगवान शिव वहां विराजमान हो गए। साथ ही लोग राजा के नाम पर इस क्षेत्र को मांधाता के नाम से जानते हैं। 

ओंकारेश्वर मंदिर का महत्त्व (Importance of Omkareshwar Temple)

कहा जाता है कि भगवान शिव माता पार्वती (Bhagwan Shiv aur Mata Parvati) के साथ तीनों लोकों में विचरण करते हैं। विचरण करने के बाद रात्रि में विश्राम करने के लिए वो ओंकारेश्वर आते हैं और यहां चौसर खेलते हैं। कहा जाता है कि मंदिर के पुजारी हर रोज चौसर के पांसे सीधे रखकर जाते हैं। लेकिन जब सुबह मंदिर के कपाट खुलते हैं तो पांसे उलटे पड़े मिलते है। पांसों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे भगवान ने रात्रि में यहां चौसर खेला हो।   

ओंकारेश्वर मंदिर का इतिहास 

ओंकारेश्वर मंदिर लगभग 5500 वर्ष पुराना माना जाता है। अभी तक ओंकारेश्वर मंदिर के निर्माण को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं। लेकिन कहा जाता है कि सन 1063 में राजा उदयादित्य (King Udyaditya) ने इस मंदिर के निर्माण के लिए चार पत्थरों को स्थापित करवाया था। इसके बाद सन 1195 में राजा भारत सिंह चौहान (Bharat Singh Chouhan) ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। ओंकारेश्वर प्रारंभ में भील राजाओं की राजधानी (Capital of Kings) थी। लंबे समय तक यहां भील राजाओं का शासन रहा। इसके बाद यहां पर सिंधिया, मालवा और परमार राजाओं ने शासन किया और मंदिर की देखरेख की। 

ओंकारेश्वर मंदिर की संरचना 

भगवान शिव (Bhagwan Shiv) को समर्पित यह मंदिर प्राचीन वास्तु कला एवं शिल्पकला का अद्भुत नमूना है। यह मंदिर नागर वास्तुशैली में बनाया गया है। जिसमें एक गर्भ गृह है जो छोटे से मंदिर जैसा प्रतीत होता है। अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर में गर्भ गृह एवं मुख्य ज्योतिर्लिंग प्रवेश द्वार के सामने की तरफ नहीं है। इस मंदिर का मंडप 60 विशालकाय खम्बों पर टिका हुआ है। इस मंदिर में 5 मंजिलें हैं जहां अलग-अलग देवता स्थापित हैं। 

ओंकारेश्वर मंदिर को लेकर मान्यता 

शास्त्रों में कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति सारे तीर्थ कर लेता है और उन तीर्थों से लाया गया जल ओंकारेश्वर शिवलिंग (Omkareshwar  Shivling) पर नहीं चढ़ाता तो उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। इसके साथ ही नर्मदा नदी (Narmada Nadi) में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी में स्नान करने या दर्शन मात्र से विशेष पुण्य मिलता है। यह पुण्य गंगा नदी में 7 दिन स्नान करने और यमुना नदी में 15 दिन स्नान करने के बराबर होता है। 

ममलेश्वर मंदिर 

ममलेश्वर (Mamleshvar) भी ज्योतिर्लिंग है। यह नर्मदा नदी के उस पार स्थित है। कहा जाता है कि ओंकारेश्वर मंदिर (Omkareshwar Temple)  के दर्शन करने के पश्चात ममलेश्वर के दर्शन करना भी अनिवार्य है नहीं तो यात्रा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। ममलेश्वर मंदिर (Mamleshvar Mandir) का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। 

ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन करने का सबसे अच्छा समय

यह मंदिर भक्तों के लिए हमेशा खुला रहता है। जुलाई से मार्च तक मौसम अच्छा रहता है, ऐसे में इस समय ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन करना बेहद उत्तम रहेगा। ओंकारेश्वर के पास निकटतम रेलवे स्टेशन खंडवा है। इसके अलावा इंदौर शहर ओंकारेश्वर से मात्र 78 किलोमीटर दूर है। जहां श्रद्धालुओं को रेलवे स्टेशन के अलावा हवाई अड्डा की सुविधा भी मिल जाती है। 

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