करवा चौथ व्रत (Karva Chauth Vrat) के संदर्भ में हमारे मन में यह जानने की उत्सुकता होती है की आखिर कौन है करवा माता (Karva Mata)? क्या होता है करवा चौथ का व्रत? सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत क्यों होता है इतना महत्वपूर्ण? इस लेख में हम इन्हीं सवालों के बारे में बात करेंगेl
करवा चौथ का व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता हैl इस दिन सुहागन स्त्रियां निर्जला उपवास कर करवा माता की पूजा (Karwa Mata ki Puja) करती है, और उनसे अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान मांगती है।
पौराणिक कथाओं की ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में करवा नामक एक स्त्री थी l करवा के पति अत्यधिक वयस्क उम्र के थे l एक दिन करवा के पति नदी पर स्नान कर रहे थे तभी स्नान करते समय अचानक से एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया। करवा के पति ने चिल्लाकर अपनी पत्नी को सहायता के लिए आवाज लगाई l तभी करवा नदी (Karwa Nadi) के किनारे अपने पति के पास पहुंची और अपनी सूती की साड़ी से धागे निकालना आरंभ किया। उसने सूती के धागों से मगरमच्छ को अपने तपोबल से बांध दिया l इसी अवस्था में वह मगरमच्छ को लेकर यमराज (Yamraj) के पास पहुंच गई। यमराज करवा माता (Karva Mata) से यह प्रश्न करते हैं कि आप यहां क्यों आई है? और आप मुझसे क्या चाहती हैं? यमराज द्वारा पूछे जाने पर करवा ने उन्हें उत्तर दिया कि मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर को पकड़ लिया है। इसलिए आप मगरमच्छ को मृत्यु का दंड दे। परंतु यमराज बताते हैं कि अभी मगरमच्छ की आयु पूर्ण नहीं हुई हैl जिससे वह मगरमच्छ को मृत्युदंड नहीं दे सकते हैं। करवा एक पतिव्रता स्त्री थी इसलिए वह यमराज से कहती है, यदि आपने मगरमच्छ को मृत्युदंड नहीं दिया एवं मेरे पति की लंबी आयु का वरदान नहीं दिया तो मैं क्रोधित होकर आपको अपनी तपोबल की शक्ति से नष्ट कर दूंगी।
करवा एक पतिव्रता स्त्री थी। इसलिए यमराज ना तो उसके वचन को ठुकरा सकते थे एवं ना ही उन्हें श्राप दे सकते थे। विवश होकर यमराज (Yamraj) को मगरमच्छ को यमलोक भेजना पड़ा एवं उनके पति को लंबी उम्र का वरदान देना पड़ा। अंततः चित्रगुप्त (ChitraGupta) ने भी करवा को सुखी जीवन का आशीर्वाद दिया। चित्रगुप्त ने करवा के सतित्व एवं पतिव्रता को देखते हुए यह आशीर्वाद दिया, कि जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ विधिवत तुम्हारा व्रत करेगी उसके पति की मैं सदैव रक्षा करूंगा। उस दिन कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी l इसलिए इस व्रत का नाम करवा चौथ (Karwa Chauth) पड़ा l करवा माता इस व्रत को करने वाली प्रथम महिला थी और तभी से इस व्रत का आरंभ हुआ। करवा चौथ के दिन जो भी स्त्री करवा माता का नाम लेकर पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करवा चौथ का व्रत करती हैं, उनके सौभाग्य की रक्षा स्वयं ईश्वर करते हैं।
वराह पुराण (Varaha Purana) के अनुसार द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत भगवान श्री कृष्ण (Bhagwan Shri Krishna) के आदेश पर पूरे विधि विधान समेत संपन्न किया था।
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें एवं व्रत का संकल्प ले।
इस दिन निर्जला उपवास रखेंl
पूजा आरंभ करने से पहले इस मंत्र का जाप करें ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुथीज़् व्रतमहं करिष्येl’
पूजा घर के किसी दीवार पर गेरू से तैयार कर चावल को पीस लेंl फिर इसी घोल से करवा का निर्माण करेंl यह विधि करवा धारण कहलाती है।
इसके बाद आठ पूरियों की अठावरी तैयार कर ले साथ ही हलवा एवं भोग लगाने हेतु कुछ पकवान बना लेंl
अब पीली मिट्टी से माता गौरी की मूर्ति का निर्माण करें और माता की गोद में उनके पुत्र गणेश को विराजमान करें।
माता गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर विराजमान करें उन्हें लाल चुनरी एवं श्रृंगार की वस्तु अर्पित करें। जल से भरा कलश माता गौरी के सामने रखें।
भेंट देने हेतु मिट्टी का टोंटीदार करवा लेकर उसके ढक्कन में गेहूं और शक्कर का बूरा भरे।
अब पूरे विधि विधान से माता गौरी और भगवान गणेश की पूजा करें और माता के समक्ष करवा चौथ का पाठ करें।
पूजा समाप्त होने के बाद घर के बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेl
रात के समय चंद्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से चंद्रमा को देखें और उन्हें अर्घ्य दे।
पूजा संपन्न होने के बाद अपने पति से उनका आशीर्वाद ले और उन्हें भोजन कराएं एवं स्वयं भी भोजन ग्रहण करें।
साल 2024 में करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर, रविवार को रखा जाएगा. हिंदू पंचांग के मुताबिक, साल 2024 में कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 20 अक्टूबर को सुबह 6:46 बजे से शुरू होगी और अगले दिन यानी 21 अक्टूबर को सुबह 4:16 बजे समाप्त होगी.
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