चित्त मन का सबसे भीतरी आयाम है, जिसका संबंध उस चीज से है जिसे हम चेतना कहते हैं। चित्त का अर्थ होता है जहां हमारे विचार जन्मते हैं, बनते हैं और जमे रहते हैं संस्कारों के रूप में। चित्त एक प्रकार की भूमि है जहां विचार जन्मते हैं और यह चित्त रूपी भूमि भी पांच प्रकार की होती है।
1.क्षिप्त , 2. विक्षिप्त , 3. मूढ़ , 4.एकाग्र एवं 5. निरुद्ध
क्रम संख्या 1 से 3 की स्थिति में हम जगत से जुड़े होते हैं और क्रम संख्या 4 एवं 5 का अभ्यास कर हम अपने को जान सकते हैं। योग का उपक्रम केवल क्रमांक 4 एवं 5 की ही भूमि में ही संभव है।
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