स्वर्ण मंदिर (Golden Temple)

Golden Temple

स्वर्ण मंदिर (Golden Temple)

स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) सिखों के प्रमुख तीर्थ स्थलों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। इसकी गिनती भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में होती है। इसे श्री हरमंदिर साहिब (Shri Harminder Sahib), दरबार साहिब (Darbaar Sahib), अत सत तीरथ (Ath Sath Tirath) आदि कई नामों से जाना जाता है। 

स्वर्ण मंदिर बनाम गुरुद्वारा  (Golden Temple Vs Gurdwara) 

सिखों का प्रमुख गुरुद्वारा (Gurudwara) होते हुए भी इसका नाम स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) है क्योंकि मंदिर (Mandir) और गुरुद्वारा (Gurudwara) एक साथ, हर धर्म की समानता का प्रतीक है। यहां न केवल सिख धर्म के अनुयाई बल्कि विभिन्न धर्मों के लोग श्रद्धा से सर झुकाते है।

स्वर्ण मंदिर का धार्मिक महत्व (Religious Significance of Golden Temple) 

यह वह पावन भूमि है जहां सिखों के पहले गुरु “गुरु नानक साहिब” ध्यान किया करते थे। यह गुरुद्वारा (Gurudwara) उस पवित्र सरोवर के बीचों बीच स्थित है जिसका निर्माण सिक्खों के चौथे गुरु “गुरु रामदास” ने खुद अपने हाथों से किया था। इस मंदिर में सिखों के पांचवें गुरु “गुरु अर्जुन” ने सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ “आदि ग्रंथ” की स्थापना की थी। 

“आदि ग्रंथ - गुरु ग्रंथ साहिब” की महिमा (Glory of Adi Granth - Guru Granth Sahib)

सिखों के लिए "आदि ग्रंथ" दस मानव गुरुओं के वंश के बाद अंतिम, संप्रभु और अनंत जीवित गुरु का रूप है। पवित्र ग्रंथ “गुरु ग्रंथ साहिब” को एक ऊंचे सिंहासन पर रखा गया है।

सिखों के छठे गुरु “गुरु हरगोविंद सिंह जी” का सिंहासन  (Singhasan of "Guru Hargobind Singh Ji"- the sixth Guru of the Sikhs)

स्वर्ण मंदिर में सिखों के छठे गुरु का सिंहासन आज तक मौजूद है जिसे “अकाल तख्त” कहते है। 

स्वर्णिम नाम की महिमा  (Glory of Golden Name)

इस गुरुद्वारे (Gurudwara) का बाहरी हिस्सा शुद्ध सोने से निर्मित है। इस पर सोने की परत चढ़ी हुई है इसलिए इसे “स्वर्ण मंदिर” कहते है। 

स्वर्ण मंदिर की संरचना  (Structure of Golden Temple)

इसके चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार और हर प्रवेश द्वार पर पैर धोने के लिए बहते पानी की व्यवस्था है। सरोवर के बीचों बीच स्थित मुख्य मंदिर के चारों ओर एक परिक्रमा पथ है।

स्वर्ण मंदिर का निर्माण (Construction of Golden Temple) 

इस गुरुद्वारे (Gurudwara) के निर्माण की शुरुआत 1577 में सिखों के चौथे गुरु "गुरु रामदास" ने की थी लेकिन इसकी स्थापना सिखों के पांचवें गुरु “गुरु अर्जुन” ने की थी। उन्होंने ही इसे डिजाइन किया था। स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) का निर्माण कार्य सन 1581 में शुरू हुआ था। लगभग 8 साल में इस गुरुद्वारे के पहले संस्करण का निर्माण पूरा हुआ था। सन 1604 में स्वर्ण मंदिर पूरा बनकर तैयार हुआ था।

सन 1762 में सिख मुस्लिम विवाद के कारण यह मंदिर नष्ट हो गया था। फिर सन 1776 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। जिसमें मुख्य प्रवेश द्वार, मार्ग और गर्भ ग्रह का निर्माण किया गया। सन 1784 में सरोवर के चारों तरफ पूल का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ।

सन 1809 में रंजीत सिंह ने इस मंदिर का संगमरमर और तांबे से पुनर्निर्माण करवाया और 1830 में गर्भगृह को स्वर्णिम बनाने के लिए सोना दान किया और इस मंदिर पर सोने की परत चढ़ाई गई।

स्वर्ण मंदिर का लंगर (Langar of Golden Temple) 

सिखों के पहले गुरु "गुरु नानक साहिब" ने गुरुद्वारे में लंगर की शुरुआत की थी। लंगर मतलब - निशुल्क भोजन। जी हां.. स्वर्ण मंदिर में हर रोज 40,000 लोगों को निशुल्क लंगर खिलाया जाता है। छुट्टी और सप्ताहांत (holidays and weekends) पर तो यह संख्या लगभग चार लाख तक पहुंच जाती है।

अगर यह सेवा भारत का हर एक मंदिर शुरू कर दें तो शायद ही कोई कभी इस देश में भूखा सोए।

सेवा (Service)

श्री हरमंदिर साहिब (Shri Harmandir Sahib) की एक और विशेषता है - सेवा दान। यहां कोई भी बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यक्ति जो चाहे सेवा दे सकता है। कर सेवा का सिख धर्म में बहुत महत्व है इसलिए हर सिक्ख अपनी मर्जी से बर्तन धोने से लेकर जूते साफ करने तक का काम करता है। तभी गुरुद्वारे में आपको एकता, समानता, अखंडता और सादगी की अनुभूति होती है। 

समय (Timing) 

मंदिर में दर्शन सुबह 3 बजे से रात 10 बजे तक होते है।

अमृतसर (Amritsar) का स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) सिखों का सबसे पूजनीय आध्यात्मिक स्थल है। पूरे विश्व से रोजाना लाखों लोग हरमंदिर साहिब (Harmandir Sahib), मत्था टेकने के लिए आते है। यह न केवल आध्यात्मिक बल्कि अमृतसर का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है जहां रोजाना लाखों सैलानी आते है।

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