चैत्र नवरात्र का महत्त्व

चैत्र नवरात्र का महत्त्व

क्या है चैत्र नवरात्र का महत्त्व 

(Importance of Chaitra Navratri)

हिन्दू धर्म में नवरात्र (Navaratri) का पर्व बहुत ही महत्त्व रखता है। हिन्दू-पञ्चाङ्ग के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्र का पर्व आता है। जिसमें से एक चैत्र नवरात्र है। यह नवरात्र चैत्र महीने (अँग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार मार्च-अप्रैल का महीना) में आता है। हिन्दू-पञ्चाङ्ग के अनुसार चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri) के साथ ही हिन्दुओं का नया वर्ष भी आरम्भ होता है। पुराणों के अनुसार चैत्र मास में ही देवी के नौ रूपों का अवतरण हुआ था। देवी के अवतरित होने का कारण भी सामान्य नहीं था। 

एक बार असुरों के राजा रम्भासुर के पुत्र महिषासुर ने अमरत्व प्राप्त करने की इच्छा से ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए बहुत कठिन तपस्या की थी। महिषासुर की तपस्या से ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर उसे वरदान माँगने के लिए कहा। महिषासुर ने उनसे अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्माजी (Brahma Ji) ने इस वरदान के बदले उसे दूसरा वरदान माँगने को कहा। तब महिषासुर ने वरदान माँगा कि देवता, असुर और मानव मेरी मृत्यु का कारण ना बने, यदि कोई मेरी मृत्यु का कारण बने तो वह केवल स्त्री हो। ब्रह्माजी ने महिषासुर को यह वरदान दे दिया। 

वरदान प्राप्त करने के बाद महिषासुर असुरों का राजा बन गया। शक्तिशाली सेना सहित महिषासुर ने मृत्युलोक, पाताललोक पर आक्रमण कर अपना अधिकार कर लिया और उसके पश्चात उसने देवताओं के राजा इंद्र पर आक्रमण किया, क्योंकि उसका उद्देश्य था तीनों लोकों पर अपना अधिकार प्राप्त करना। देवताओं और असुरों के बीच सौ वर्षों तक युद्ध होने के बाद देवताओं की सेना असुरों की सेना से हार गई। तत्पश्चात इंद्र के सिंहासन पर महिषासुर ने अपना अधिकार कर लिया। 

महिषासुर के बढ़ते आतंक को देखकर भगवान शंकर (Bhagwan Shankar) और श्रीहरि (Shri hari Narayan)ने देवी के नौ रूपों को प्रकट करने का निर्णय लिया क्योंकि महिषासुर का अंत कोई स्त्री ही कर सकती थी। 

इसके बाद सभी देवताओं के तेज से और माता पार्वती (Mata Parvati) के अंश से देवी के नौ रूप अवतरित हुए। सभी देवी-देवताओं ने आदिशक्ति को अपने अस्त्र-शस्त्र भी समर्पित किए जिससे माता अधिक शक्तिशाली हो गईं। यह क्रम चैत्र महीने के प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तक चला, इसलिए इन नौ दिनों को चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratra) के नाम से जाना जाता है और इन दिनों में माता के नवरुपों के प्रकट होने के कारण हिन्दुओं के लिए चैत्र-नवरात्र का विशेष महत्त्व है। 

वर्ष में कितनी बार नवरात्र का पर्व आता है, क्या है हर एक का महत्त्व:

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिन्दू-पञ्चाङ्ग के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्र (Navratri) का पर्व आता है। जिनमें से दो नवरात्र को हम चैत्र और शारदीय नवरात्र के नाम से जानते हैं, और बाकि दो को गुप्त नवरात्र (Gupt Navratra) के नाम से जाना जाता है। वर्ष का पहला नवरात्र चैत्र महीने (अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार मार्च-अप्रैल का महीना) और दूसरा नवरात्र अश्विन महीने (अँग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर-नॉवेम्बर का महीना) में आता है, जिसे शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। 

हिन्दू-पञ्चाङ्ग के अनुसार चैत्र नवरात्र (Navaratri) के साथ भारतवर्ष में हिन्दुओं का नव-वर्ष शुरू होता है और शारदीय नवरात्र के साथ शरद-ऋतु का आगमन होता है, यही कारण है कि इसे शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। यदि गुप्त नवरात्रों पर चर्चा करें तो पहला गुप्त नवरात्र माघ महीने और दूसरा आषाढ़ महीने में आता है। गुप्त नवरात्र मुख्य रूप से तांत्रिकों और साधकों के लिए महत्त्व रखता है, क्योंकि गुप्त नवरात्रों के दिनों में ही तांत्रिक साधनाएँ और गुप्त विद्याओं की सिद्धि की प्राप्ति हेतु साधनाएँ की जाती हैं।

भारतवर्ष में गृहस्थों के लिए चैत्र और शारदीय नवरात्र मनाने की ही मान्यता है, क्योंकि गृहस्थों और पारिवारिक लोगों को इन दोनों नवरात्रों में आदिशक्ति की आराधना से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
 

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